देश मैं चारों और मंहगाई की हा हा कार मची हुई है । आम जनता इस मंहगाई की मार से त्राहि त्राहि पुकार रही है । किंतु प्रदेश तथा देश की सरकार किम कर्तव्य बिमूढ़ बनी बैठी है उनके पास न तो कोई ठोस कदम उठाये जा रहा है और न ही उनके पास कोई ठोस रणनीति है और अभी तक किए गए प्रयासों से ऐसा लगता है की सरकार इस बात को लेकर गंभीर नही है और सरकार बढ़ती मंहगाई के सामने घुटने टेकते नजर आ रही है । देश तथा प्रदेश की सरकारें एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ रही है । इन सरकारों द्वारा अपने स्तर से जमाखोरी और कालाबाजारी के ख़िलाफ़ कोई कारगर कदम उठाये गए हो ऐसा प्रतीत नही होता है । राजनैतिक दल भी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर , न तो वे कोई इसका हल सुझा रहे हैं और न ही वे आपस मैं मिल बैठकर इसका समाधान निकालने का मानवीय और सार्थक प्रयास कर रहे हैं । बेचारी गरीब जनता इस मंहगाई की चक्की मैं पीसी जा रही है , उसे समझ मैं नही आ रहा क्या करें क्या न करें , उन्होंने ने जिनको अपना प्रतिनिधि बनाकर सरकार मैं भेजा है वे भी कुछ करते नजर नही आते है , आम जनता इन नेताओं की ग़लत नीतियों के परिणामों को भुगतने को मजबूर है ।
यदि देश तथा प्रदेश स्तर की सरकारें वाकई मैं इस समस्या को लेकर गंभीर है तो सरकार अपने अपने स्तर से उत्पादों पर लगने वाले विभिन्न करों मैं रियायत देकर मंहगाई की त्रासदी काफी हद तक कम कर सकती है । जमा खोरी तथा कालाबाजारी पर अंकुश लगाने हेतु ठोस और कड़े कदम उठा सकती है । सभी राजनीति दल जनता के हितों को ध्यान मैं रखते हुए एक दूसरे को कोसने की बजाय , आपस मैं मिल बैठकर कोई ठोस और कारगर हल निकाल सकते हैं । अधिकारियों , नेताओं और मंत्रियों के आगे पीछे चलने वाले ताम झाम और अन्या वी आई पी सुबिधयों और फिजूल खर्चे मैं कमी की जा सकती है । सार्वजनिक वितरण प्रणाली का और चुस्त दुरुस्त किया जा सकता है । अतः जरूरत है जनहित मैं इमानदारी से प्रयास किए जाने की ।
फ़ॉलोअर
रविवार, 13 अप्रैल 2008
मंहगाई के सामने आत्म समर्पण करती सरकार !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जल उठे हैं घर घर दीप !
जल उठे हैं घर घर दीप रात्री अमावस्या माह कार्तिक । जल उठे हैं घर घर दीप रात्री अमावस्या माह कार्तिक । समुद्र मंथन से रतनों...
-
रातों रात रेल दिया घुसकर अंदर पेल दिया आतंकिस्तान में तबाही का भारत ने खेल खेल दिया । भस्म हुये आतंकी नापाक फेल गई बस आग ही आग अड्डे सब हु...
-
सूर्य चंद्रमा हुये पास , कम पड़ता है #आकाश , ऐसा उड़ता #भारत आज , मँगवा दो और आकाश । दुश्मनों की है हालत खराब , कुछ पकड़ा...
-
#खता किस किस की मैं कब तक याद रखूं पता #खुशियों का मैं कब तक #नजरअंदाज रखूं । दिल में रश्क की मैं कब तक #आग रखूं खुशियों को अपने से मैं कब...
ए भाई यह साले खुद जमा खोर ओर काला बाजारी हे या फ़िर इन के रिश्तेदार, अब अपने पेर पर कोन कुल्हाडी मारे ?
जवाब देंहटाएं