जबसे क्रिकेट मैं खेल भावना को दरकिनार कर व्यावसायिकता हावी हुई , तब से क्रिकेट एवं खिलाड़ियों के व्यवहार मैं गिरावट आनी शुरू हुआ है । पहले तो विज्ञापनों के माध्यम से पैसे कमाने की दौड़ और अब आई सी अल और आई पी अल जैसे संस्था के माध्यम से अपने को श्रेष्ठ साबित करने और धनवान बनाने की होड़ जारी है । उसी का परिणाम है की आज इन संस्थाओं द्वारा आयोजित हुए मैचों मैं दिनों दिन नए नए विवाद जुड़ते जा रहे हैं । चाहे हम चीयेर्स लीडर के विवाद की बात करें या फिर ताज़ा विवाद हरभजन सिंह द्वारा श्री संत को थप्पड़ मारने का हो । लगता है यह क्रिकेट की उच्चता का चरम है जो आज लोकप्रियता के झंडे गाडे हुए हैं , और उसी लोकप्रियता के सहारे लोग अब पैसा बनाना चाहते हैं , वह भी क्रिकेट को पूरी तरह व्यावसायिकता का जामा पहनाकर । उसके आगे टीम भावना और खेल भावना गौण है । चूंकि अब एक ही देश के एक ही टीम के खिलाड़ी अपने को अधिक पैसा कमाने और श्रेष्ठ साबित करने की होड़ मैं अपनी ही राष्ट्रीय टीम की सीनियर और जूनियर खिलाडी की जिम्मेदारी और भावना को दरकिनार कर आज प्रतिद्वंदी की तरह व्यवहार कर रहे हैं । क्या यह प्रतिद्वंदी पूर्ण भावना यह आयोजित खेल के समाप्त होते ही ख़त्म हो जायेगी या फिर एक चिंगारी की तरह कंही दबी रहेगी । चीयर लीडर्स को शामिल किया जाना ग़लत नही है , उसकी धारणा को वैसा का वैसा अपनाने की बजाय , उसे देश की संस्कृति और परम्परा की अनुरूप ढालकर अपनाया जाना चाहिए था ।
अतः खेलों को बढावा दिया जाना और उसमे अन्य नामी संस्थाओं और प्रख्यात लोगों द्वारा भाग लिया जाना अच्छी बात है , किंतु उसमे खेल भावना और खिलाड़ियों के बीच आपसी सद भाव कायम रहना बहुत जरूरी है । ताकि राष्ट्रीय टीम के रूप मैं खेलते समय टीम भावना बनी रहे । क्रिकेट विवादों से दूर रखकर क्रिकेट के उच्चता और लोकप्रियता को बनाया रखा जा सकता है ।
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