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रविवार, 9 सितंबर 2018

जाती हुई बारिश# से बातें# कर लें दो चार .


चलो वक्त से थोड़ा बचपन लें उधार .
जाती हुई बारिश से बातें कर लें दो चार .
फिर न मिलेगी वो बारिश की फुहार . 
और न ही होगा बड़ी बूंदों का प्रहार .
पानी भरे गड्डों में थोड़ा उछल लें यार .
मस्ती से भीगकर हो जायें सरोबार .
कीचड लगने की चिंता करना है बेकार .
चलो पानी में कागज़ की नाव दें उतार .
जाने दो जहाँ तक ले जाए पाने की धार .
डूब भी जाए तो क्या इसमें नहीं जीत हार .
उड़ जाने दो छतरी चिंता काहे की यार .
चलो भीगते हुये ही घूम आएं बाजार .
घर में डांट तो होगी पर न होगी मार .
अदरक वाली चाय की होगी दरकार .
अब वापस कर दें यह बचपन उधार .
फिर से लौट आयें "दीप" घर द्वार .

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