इमेज गूगल साभार
वो धूप का कर इस्तकबाल ,
छत पर सुखाते है अपने गीले बाल,
सुनहरी धूप के आगोश में ,
तन मन उनका सुकुं से हुआ निहाल ।
रवि भी शनै शनै चल रहे है चाल ,
बढ़ा रहे है तपन होकर कुछ लाल ।
बढ़ती तपन से है लाल उनके गाल ,
अब पोछते है पसीना तन का ,
लेकर एक मखमली रुमाल ,
अब परेशां है वो होकर बेहाल ।
दरखतों में रुक गई है रवि की चाल ,
उनके तले शीतल छांव है कमाल ।
बेचैन दिल में उनके आया इक ख्याल ,
काश मिले कहीं ठंडी छांव का जाल ,
जा ठहरी नजरें उनकी इक दरख़्त में ,
पाने ठंडी छांव बढ़ चले कदमताल ।
दरख्तो के साये उन्हें मिला जो सुकून ,
सहला रहे है वो अब पसीने से तर बाल ।
****,दी.कु.भानरे (दीप) ****https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10220683880356631&id=1524713766
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