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बुधवार, 14 जुलाई 2021

यदि हो जाये ऐसी #बगावत !

 


सुबह का पता न शाम का ,

खाने की सुध न आराम का ,

लगातार सर झुकाये बैठे हो ,

#स्क्रीन पर नजर गड़ाये बैठे हो ।


कभी दर्द की शिकायत ,

तो उससे निजात की कवायद ।


एक अलग ही दुनिया बनाये बैठे हो ,

साथ अपनों का गवाये बैठे हो ।


ध्यान जरा अपना हटाकर ,

सर को अपने  ऊपर उठाकर ,

उंगलियों को अपनी विराम दो ,

आंखों को अपनी आराम दो ।


यदि हो जाये ऐसी बगावत ,

तो मिल जाये कुछ राहत ।


अस्तित्व को अपने एक जुबान दो ,

अपने होने का जरा प्रमाण दो ,

बड़ों की बातों को मान दो ,

दीवानगी #मोबाइल को जरा लगाम दो ।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय भारद्वाज मेम ,
    मेरी रचना की चर्चा शुक्रवार (16-07-2021) को "चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127) पर शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  2. संगीता मेम, अमृता मेम एवं शर्मा सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  3. खरे सर , आपकी उत्साहवर्धक बहुमूल्य टिप्पणी हेतु बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी दर्द की शिकायत ,
    तो उससे निजात की कवायद ।

    एक अलग ही दुनिया बनाये बैठे हो ,
    साथ अपनों का गवाये बैठे हो ।

    सुन्दर रचना.....

    जवाब देंहटाएं
  5. सामयिक रचना …
    मोबाइल ने बहुत कुछ छीना है हम सब से और बच्चों से …
    हम समझ कर भी नहि समझते और बच्चे तो बच्चे हैं … मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत आभार …

    जवाब देंहटाएं
  6. विकास सर,दिगंबर सर एवं अनुराधा मेम, ब्लॉग में आने और आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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