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बिना हद का आसमान
है ,
ऑनलाइन के जमाने में
,
दिल भी बे-हद मिलेंगे
,
दीवानगी को आजमाने
में ।
मुलाकातों भी होती
है अब ,
चैट रूम के ठिकाने में ,
लगता नहीं जरा भी
वक्त ,
दिन रात गुजर जाने
में ।
अदायें भी शामिल , नखरे भी ,
अपने चलचित्र को बनाने
में ,
बढ़ जाते है जिससे
चाहने वाले ,
सोशल मीडिया के खजाने में ।
बदल रही है वफायें
,
नये दोस्तों के आ
जाने में ,
वक्त भी लग रहा है
कम ,
रिश्तों के बिखर जाने
में ।
गर पहचान लें हद अपनी,
ऑनलाइन के जमाने में
,
दिल भी रहेंगे खिले
“दीप” ,
दीवानगी के बागानों में ।
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर , आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी सर , आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवि सर , आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सिन्हा मेम मेरी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार (26-9-21) को "जिन्दगी का सफर निराला है"((चर्चा अंक-4199) पर शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ज्योति मेम, आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना मेम, आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआज के परिदृष्य को रेखांकित करती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर आधारित बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम एवं मनीषा मेम आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह!क्या खूब कहा सर।
जवाब देंहटाएंसादर
शानदार लेखन, सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सैनी मेम एवं संदीप सर , आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु बहुत सुंदर सा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआज के गेजेट्स पर निर्भर होते समय पर उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंयथार्थ सटीक।
आदरणीय कोठारी मेम , आपकी उम्दा सी प्रतिक्रिया हेतु बहुत उम्दा सा धन्यवाद ।
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