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शनिवार, 19 नवंबर 2022

काश फिर से आ जाये #श्रद्धा !



अब रही न कोई #श्रद्धा ,

अपने ही परिवार में 

अपने घर और द्वार में ।


अब रही न कोई श्रद्धा ,

संस्कृति और संस्कार में ,

धर्म और अपने त्यौहार में ।


अब खत्म हो गई है श्रद्धा ,

अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति ,

अपने माता पिता से अति।


अच्छी नहीं है ऐसी श्रद्धा,

जो करती मनमानी ,

जो अपनों को समझती दुश्मन जानी ।


अब बिखर गई है श्रद्धा ,

टूटकर कई टुकड़ों में ,

फिजाओं के किन्ही कतरों में ।


काश रुक जाती श्रद्धा ,

परिवार से बिछड़ने से ,

उलझनों में उतरने से ।


काश फिर से आ जाये श्रद्धा ,

वही पहला सा रूप धरकर ,

वही अपने पुराने घर पर ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार 20 नवम्बर, 2022 को     "चलता रहता चक्र"    (चर्चा अंक-4616)  पर भी होगी।--
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  2. इसलिए कहा जाता है कि कोई भी फैसला बहुत सोच समझकर लेना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय मयंक सर,
    मेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार 20 नवम्बर, 2022 को "चलता रहता चक्र" (चर्चा अंक-4616) पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय सुशील सर, ज्योति मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय विमल सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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