विश्व या देश के किसी भी कोने मैं प्राक्रत्रिक आपदाओं जैसे बाढ़ , भूकंप , तूफ़ान अथवा सूखा अथवा मानव चूक से पैदा होने वाली कृत्रिम आपदाएं हो , इस प्रकार की घटित होने वाली भयंकर आपदाओं मैं देश विदेश से मदद के लिए कई हाथ आगे आते हैं । व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लोग मदद के लिए सामने आते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज मैं सामूहिक रूप मैं साथ रहकर , एक दूसरे के सुख दुःख मैं काम आकर अपने जीवन का निर्वहन करता है । इसी स्वाभाविक वृत्ति के कारण मनुष्य अपने आसपास के लोगों की अपने सामर्थ्य के अनुसार दुखित और किसी घटना मैं पीड़ित लोगों की मदद करता है । सामान्तया दवाएं , भोजन , कपड़े एवं जीवन हेतु आवश्यक वस्तुओं अथवा आर्थिक सहायता के रूप मैं हताहतों की मदद की जाती है ।
इन सबके बीच ऐसे लोग अथवा संस्था है जो खामोशी के साथ निःस्वार्थ भावना से मदद हेतु आगे आते हैं । ऐसे लोगों की कमी नही है जो जान जोखिम मैं डालकर लोगों की मदद करते हैं । अतः मददों के इन अच्छे पहलु के इतर मददों के विकृत स्वरुप मैं सुधार होना जरूरी है । मदद ऐसी की जाए जो आडम्बर रहित हो , जिसमे कोई मजबूरी न हो । सामर्थ्य के अनुसार ऐसी मदद की जाए की सम्मान के साथ एवं आवश्यकता के अनुरूप , मदद पाने वाले लोगों तक यह मदद पहुचे । उनको भी लगे की इस दुःख और परेशानी की घड़ी मैं हमारे अपने साथ हैं ।
विचारणीय आलेख!!
जवाब देंहटाएंAise log sabhi jagah hai..keval system ke dar se apne kaam chupchap karte rahete hai..warna yeh corrupt system kab ka khatam ho chuka hota.
जवाब देंहटाएंAccha lekh hai!