कहा जाता है की सुन्दरता देखने वालों की नजर मैं होती है । यह भी कहा जाता है की तन की सुन्दरता की जगह मन विचार और वाणी की सुन्दरता ज्यादा महत्वपूर्ण होती है । किंतु इस बाजारवाद के युग मैं मन की सुन्दरता हाशिये मैं चली गई है और तन की सुन्दरता श्रेष्ठता हासिल कर रही है । इसी बढ़ते बाजारवाद के प्रभाव के कारण विश्व के लोगों को इस साँप बिच्छू और साधुओं के देश के लोगों मैं अचानक सुन्दरता नजर आने लगी है । और यह सुन्दरता पुरुषों मैं कम महिलायें मैं ज्यादा ढूँढी जा रही है ।। इसी बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण देश की महिलायें विश्व मैं सुन्दरता का परचम लहराती नजर आ रही है ।
महिलायों की सुन्दरता के नाम पर मिस इंडिया , मिस एशिया , मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स जैसी न जाने क्या क्या प्रतियोगिताएं आजकल आयोजित की जा रही है । अब तो प्रदेशों के नाम पर , तो कहीं जिलों के नाम पर ये प्रतियोगिताएं होने लगी हैं और लगता है अब तो मिस मौहल्ला प्रतियोगिता भी होने लगेंगी , अर्थात हो सकता है अब गली गली मैं सुदरता की खोज होगी । और अब तो मिस के मिसेस की भी ब्यूटी प्रतियोगिताएं होने लगी है ।
किंतु प्रश्न उठता है की श्रेष्ठ सुन्दरता की खोज सिर्फ़ महिलायों मैं क्यों खोजी जा रही है । क्या इस देश के पुरूष सुंदर नही होते हैं । क्या पुरुषों मैं सुन्दरता नही होती है । उनके लिए क्यों नही इस तरह की प्रतियोगिताएं की भरमार हैं पुरुषों के लिए बमुश्किल एक्का दुक्का ऐसे प्रतियोगिताएं देखने को मिलेंगी । किंतु महिलायों के नाम पर ऐसी प्रतियोगिताएं की भरमार हैं ।
इसी बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को देखें तो देश मैं इसका और विस्तृत रूप मिल जायेगा । पहले तो बड़ी बड़ी कंपनियां रिसेप्निस्ट और पब्लिक संपर्क वाली जगहों मैं आकर्षक और सुंदर मुखमुद्रा वाली महिलायों को नौकरी मैं रखती थी , अब तो छोटे छोट दुकानों मैं सुंदर महिलायों को रखा जाना एक चलन सा बनने लगा है ।
इसी बाजारवाद का प्रभाव फिल्मों , प्रिंट मीडिया और द्रश्य और श्रव्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कार्यों मैं भी देखने को मिलेगा । न्यूज़ रीडर , एंकर एवं रिपोर्टर जैसे प्रोफेसन मैं भी आजकल सुंदर महिलायों को अधिक से अधिक स्थान दिया जा रहा है । किसी भी कंपनी के विज्ञापनों मैं चाहे उस प्रोडक्ट का सम्बन्ध महिलायों से हो न हो सुंदर महिलायों को जरूर स्थान दिया जा रहा है ।
अब इस बाजारवाद के प्रभाव के चलते वे महिलायें क्या करें जिनके पास बाह्य सुन्दरता नही है । कई बार उन्हें इसके कारण वाँछित परिणाम पाने मैं असफलता हाथ लगती है और निराशा झेलने पड़ती है भले ही उसके पास बाहरी सुन्दरता के अतिरिक्त सभी गुण विद्धमान हैं । इसी बाजारवाद का प्रभाव यह हो रहा है की आज के युवा वर्ग मैं सुंदर जीवनसाथी पाने की चाह तो होती है भले ही वह दिखने मैं अच्छा न हो । युवा वर्ग अब यह भी चाहने लगा है की उनकी माँ और बहने भी सुंदर हो ।
अतः जरूरी है की बाजारवाद के इस बढ़ते प्रभाव जिसमे आंतरिक गुणों की जगह बाह्य सुन्दरता जैसे गुणों को तरजीह दी जा रही है उसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए । और योग्य और गुणवान लोगों को प्रोत्साहित कर एक स्वस्थ्य समाज के विकास की कामना की जानी चाहिए ।
bahut sunder lekh
जवाब देंहटाएंregards
"फेयर एंड लवली" की सेल फिगर सुनेगे तो होश उड़ जायेगे आपके....
जवाब देंहटाएंमहिलाएँ और सुन्दरता पुरुष की कमजोरी हैं, बाजार इसी को भुना रहा है।
जवाब देंहटाएंबाजार से ही सब चलता है..
जवाब देंहटाएंबाजार की मांग पर ही सब चलता है!
जवाब देंहटाएंक्या बात हे,लेकिन सुंदरता तो जुबान पर,चरित्र की,ओर मन की होनी चाहिये , वही नारी इज्जत पाती हे जिस के पास मन की जुबान की सुंदरता हो, बाकी....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपने आज के समय का बहुत ही प्रासंगिक विषय छेड़ा है। लेकिन आपके द्वारा उठाए गए विषय के कुछ दूसरे पहलुओ पर भी मैं आपका ध्यान ले जाना चाहूंगी। आपने कहा कि महिलाओं के लिए तो बहुत सी सौंदर्य प्रतियोगिताएं होती हैं लेकिन पुरुषों को कोई नहीं पूछता। अरे भाई कुछ चीजें जन्मजात ही मिल जाती हैं जैसे कि सौंदर्य की विरासत। अगर पुरुष अपनी हर जगह अपनी शक्ति का परचम लहराते फिरते हैं तो महिलाएं अपनी सुंदरता पर क्यों ना इतराएं। प्रकृति प्रदत्त चीजों पर किसे फक्र नहीं होता?
जवाब देंहटाएंआपने सुंदरता को निशाना बनाने वाले बाज़ारवाद पर भी हमला बोला है। अरे भई, आज के ज़माने में कोई चीज़ फ्री में नहीं मिलती। बाज़ार इतना कुछ देता है तो बदले में कुछ लेगा भी। इसमें कोई शक नहीं कि दुनियाभर में होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं ने महिलाओं की पहचान को एक नया आयाम दिया है। भले ही ये प्रतियोगिताएं सौंदर्य के सिर्फ एक पक्ष को ही दिखाती हैं लेकिन ये हौसला बहुत ज्यादा बढ़ाती हैं। आप खुद सोच सकते हैं कि आत्मविश्वासी होने पर इंसान नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकता है। रही बात मन की सुंदरता को पहचनानने की, तो ये काम समाज का है, हमारा और आपका है, बाज़ार का नहीं। जब बाज़ार अपना काम पूरी शिद्दत से कर रहा है तो फिर हम अपना फर्ज़ क्यों नहीं निभाते? एक और बात मैं कहना चाहूंगी कि महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं। समाज संतुलित बना रहे, इसके लिए महिलाओं और पुरुषों की बराबर की भागेदारी की बहुत ज़रूरत है। ज़रूरत यह समझने की है कि पुरुषों महिलाओं में कोई प्रतियोगिता नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। उनकी अपनी-अपनी ख़ूबियां हैं और ज़रूरत सिर्फ उन्हें पहचानने की है। फिर देखिएगा, हम कहां से कहां पहुंच जाएंगे।
बहुत कम बेनाम टिप्पणी अच्छी होती हैं। ये बेनामी टिप्पणी जरूर किसी नारी की है, अच्छी है सहमत हूं। पर आप के भी कुछ प्वाइंट से मैं सहमत हूं। क्या करें जो सुदर नहीं हैं?
जवाब देंहटाएंwestern culture ka effect hamen jaane kahan le jaraha hai..lekin ham hain ki ek andhi gali mein doude chale jaarahe hain, is mein orten (ladies) bhi kam zimmedaar nahi hain....
जवाब देंहटाएंआपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंआलेख पढने और उस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यबाद .
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