चाहत यह उनकी
बस इतना सा फसाना है।
चाहतों का समंदर है
,
और डूबते ही जाना
है ।
फूलों की खुशबू भी
,
अब करती नहीं दीवाना है ।
उनकी सांसों की खुशबू
ही
करे मौसम सुहाना है । .........
महफिल भी सितारों
की ,
अब लगती वीराना
है ।
साथ ही उनका अब
तो ,
महफिलों का खजाना
है ।.........
चाँदनी रात का शबाब
भी ,
अब दिल को नहीं गवारा है ।
चमक उनकी आंखे की
,
दीप दिवाली का नजारा
है । .........
समंदर से भी गहरा
,
लगाव यह हमारा है ।
चाहत अनंत आकाश है
,
और चाहत ही सरमाया
है । .........
चाहत यह उनकी
बस इतना सा फसाना है।
चाहतों का समंदर है
,
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब।
आदरणीय सिन्हा मेम ।
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा को "अदालत अन्तरात्मा की.."( चर्चा अंक4228) पर शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद और आभार ।
आदरणीय सुधा मेम ,
जवाब देंहटाएंआपकी लाजबाब टिप्पणी हेतु सादर धन्यवाद ।