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साहिल का यह है गरूर ,
या ये लहरों का है दस्तूर ,
किसका है इसमें कसूर ,
जो मिलकर भी हो जाते हैं दूर ।
तूफ़ानों की संगत में आकर ,
लहरों को छाया कैसा सरूर ,
चीर कर साहिल की सीमा ,
हो जाती साहिल से दूर ।
पाकर ऊंची ऊंची दीवारें ,
साहिल भी हो जाता ऐसा मगरूर ,
लहरें टकराकर होती चूर ,
मौन खड़ा देखें साहिल दूर ।
गर न सुनती तूफ़ानों की लहरें ,
गर साहिल न पाते दीवारों के पहरे ,
लहरें साहिल संग लेती फेरे ,
कभी न होते एक दूजे से दूर ।
साहिल का यह है गरूर ,
या ये लहरों का है दस्तूर ,
किसका है इसमें कसूर ,
जो मिलकर भी हो जाते हैं दूर ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०७-१०-२०२१) को
'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
पाकर ऊंची ऊंची दीवारें ,
जवाब देंहटाएंसाहिल भी हो जाता ऐसा मगरूर ,
लहरें टकराकर होती चूर ,
मौन खड़ा देखें साहिल दूर ।
कहते चुप रहना हर समस्या का हल है पर कभी-कभी चुप रहना समस्या का जड़ बन जाता है
बहुत ही सुंदर रचना
तूफ़ानों की संगत में आकर ,
जवाब देंहटाएंलहरों को छाया कैसा सरूर ,
चीर कर साहिल की सीमा ,
हो जाती साहिल से दूर ।--- वाह बहुत खूब।
आदरणीय सैनी मेम ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा
'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०) में शामिल करने के लिये बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सादर
आदरणीय मनीषा मेम एवं संदीप सर , आपकी सुंदर और सकारात्मक अभिव्यक्ति हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजीवन संदर्भ को परिभाषित करती खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम, आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजू जी एवं सरिता मेम , आपकी बहुमूल्य और सुन्दर प्रतिक्रिया देने हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर , आपकी बहुमूल्य और सुन्दर प्रतिक्रिया देने हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं9 अक्तूबर 2021 को 9:29 pm