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बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

किसका है इसमें कसूर !

इमेज गूगल साभार

साहिल का यह है गरूर ,

या ये लहरों का है दस्तूर , 

किसका है इसमें कसूर ,

जो मिलकर भी हो जाते हैं दूर ।


तूफ़ानों की संगत में आकर ,

लहरों को छाया कैसा सरूर ,

चीर कर साहिल की सीमा ,

हो जाती साहिल से दूर ।


पाकर ऊंची ऊंची दीवारें ,

साहिल भी हो जाता ऐसा मगरूर , 

लहरें टकराकर होती चूर ,

मौन खड़ा देखें साहिल दूर ।


गर न सुनती तूफ़ानों की लहरें ,

गर साहिल न पाते दीवारों के पहरे ,

लहरें साहिल संग लेती फेरे ,

कभी न होते एक दूजे से दूर । 


साहिल का यह है गरूर ,

या ये लहरों का है दस्तूर , 

किसका है इसमें कसूर ,

जो मिलकर भी हो जाते हैं दूर ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०७-१०-२०२१) को
    'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. पाकर ऊंची ऊंची दीवारें ,
    साहिल भी हो जाता ऐसा मगरूर ,
    लहरें टकराकर होती चूर ,
    मौन खड़ा देखें साहिल दूर ।
    कहते चुप रहना हर समस्या का हल है पर कभी-कभी चुप रहना समस्या का जड़ बन जाता है

    बहुत ही सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. तूफ़ानों की संगत में आकर ,

    लहरों को छाया कैसा सरूर ,

    चीर कर साहिल की सीमा ,

    हो जाती साहिल से दूर ।--- वाह बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सैनी मेम ,
    मेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा
    'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०) में शामिल करने के लिये बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय मनीषा मेम एवं संदीप सर , आपकी सुंदर और सकारात्मक अभिव्यक्ति हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन संदर्भ को परिभाषित करती खूबसूरत रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय जिज्ञासा मेम, आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर, सार्थक रचना !........
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय संजू जी एवं सरिता मेम , आपकी बहुमूल्य और सुन्दर प्रतिक्रिया देने हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय मनोज सर , आपकी बहुमूल्य और सुन्दर प्रतिक्रिया देने हेतु सादर धन्यवाद ।

    9 अक्तूबर 2021 को 9:29 pm

    जवाब देंहटाएं

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