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बुधवार, 30 अप्रैल 2008

आज का शिक्षित बेरोजगार युवा !

आज का शिक्षित , आज कल बेरोजगारी और बेकारी की मार झेल रहा है । रोजगार के लिए दर दर की ठोकरे खाते हुए इधर उधर भटक रहा है । हाथ मैं न कोई हुनर हैं की स्वयं का कोई हुनरमंद व्यवसाय शुरू कर सके । घर का वातावरण और परिस्थितियां ऐसी नही है की पढ़ाई के लिए पूर्णतः अनूकूल वातावरण मिल सके । अच्छी और उच्च पढ़ाई के लिए अच्छी किताबे और त्युसन पर खर्च कर सके । अतः एक औसत दर्जे की पढ़ाई कर रह जाता हैं । फलस्वरूप अर्जित शिक्षा के माध्यम से उच्च पदों और उच्च नौकरी को पाने की लालसा भी नही रख सकता है । सिर्फ़ हिसाब किताब वाले बाबुगिरी के कार्य और लिखाई पढ़ाई के कार्य अलावा कोई अन्य कार्य करने मैं अपने आप को समर्थ नही पाता है । क्योंकि अभी तक जो शिक्षा पाई है उससे सिर्फ़ यही कर सकता है । इस शिक्षा को ग्रहण करते हुए अपने पारंपारिक और पुरखो से चले आ रहे हुनरमंद व्यवसाय को भी छोड़ और भूल चुका है । शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने पारंपारिक व्यवसाय को करने की इक्षा नही रह जाती है । आज की सिनेमा और टीवी के कार्यक्रमों ने और भी पतन की और पहुचाया है । आजकल ज्यादातर समय इन्ही मैं बिताता है , उनसे प्रेरित होकर हमेशा अच्छे सुख सुबिधाओं को पाने और सुंदर जीवन साथी को पाने के ख्वाव सजोते रहता है भले ही अच्छा हुनर और अच्छा शारीरिक सौष्ठव और सुन्दरता न हो और ये सब जल्द से जल्द कम परिश्रम और आसान रास्ते से पाना चाहता है । दिनोदिन भौतिकवादी और पाश्चात्य संस्कृति के नजदीक पहुच रहा है । वे ज्यादा भाने लगी है ।
बेरोजगार और बेकार रहने के कारण घर वाले भी परेशान रहने लगे हैं और घर मैं एवं समाज मै निकम्मा और नाकारा समझकर हेय दृष्टि से देखा जाना लगा हैं । धीरे धीरे निराशा घेरने लगती है , जिससे समाज और दुनिया से मोह भंग होने लगा है । कम से कम भावी युवाओं जो की देश का कल का भविष्य है के बारे मैं सोचते हुए कब इन प्रतिकूल परिस्थितियों को आवश्यकता अनुरूप - अनुकूल परिस्थितियां मैं बदला जाएगा ।

प्रतिक्रिया - बुद्धिजीवी ब्लॉग पाठक वर्ग द्वारा ब्लॉग पढने और उस पर प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । मेरे ब्लॉग के लेखन मैं उन पिछडे और ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की बात कर रहा हूँ जो बड़ी मुश्किल से जैसे तैसे अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं , उन्हें न तो ठीक से कोई मार्गदर्शन देने वाला मिलता है और न ही उचित अवसरों की जानकारी होती है । वे आर्थिक रूप से उतने सक्षम भी नही होते हैं और न ही उनके स्थानीय स्तर पर ऐसे श्रोत होते हैं की वे आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बन सके ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक जी ये रोने धोने वाला पोस्ट है. आसमान अनंत है. कोई बंदिश नही. आप उडे और उन्मुक्त उडे. सारा आसमान आपका है

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  2. मेरे विचार से...
    अगर आपने मैट्रिक्स फ़िल्म देखी है तो आपको मेरी टिप्पणी ज्यादा अच्छे से समझ आयेगी. नही देखी तो देखें. अच्छी फ़िल्म है.

    हमारे चारों ओर एक मैट्रिक्स(मायाजाल) रचा गया है. जिसके अपने कुछ नियम हैं जैसे कि आपको स्कूल में अच्छे नंबर लाने हैं फ़िर कालेज की पढ़ाई करनी है. फ़िर एक आसान सुरक्षित नौकरी ढूंढनी है. शादी करनी है बच्चों को पालना है. आदि आदि...

    अगर कोई इन नियमॊं में सही तरीके से चल जाता है तो वो इस मैट्रिक्स में सही तरीके से रहता हैं. जो नही चल पाता है तो वो ठीक वैसे ही रोता है जैसे कि आप रो रहे हैं.
    अभी एक तीसरा विकल्प भी है...
    जो इस मैट्रिक्स के नियमों को तोड़ देता है उन्हे अपने मुताबिक मोड़ लेता है वो बनता है शक्तिमान. उदाहरण आपको इतिहास में भरे पडे़ मिलेंगे. चाहे वो स्टीव जाब्स हों या बिल गेट्स सभी ने इन नियमो को तोड़ मोड़ दिया.

    आपकी पोस्ट पढ़कर लगता है कि आप वही पुराने स्कूली निबंधों के मायाजाल में फ़ंसे हैं जिनमें बेरोजगारी का रोना होता था.

    इस मायाजाल से निकलकर सच्चाई को समझिये. आपने क्या किसी नेता हो ये कहते सुना है कि वो देश के युवाओं से कह रहा हो कि उसे सर्वश्रेष्ठ की तलाश है जो प्रधानमंत्री बन सके. कभी नही! ना ही इस तरह की चीजें स्कूलो में पढ़ाई जाती हैं.
    वहां की पढ़ाई अच्छी हो सकती है पर पर्याप्त नही.
    अगर आप इस बात से परेशान हैं कि आप अपनी कम शिक्षा की वजह से आगे नही बढ़ पा रहे हैं तो परेशान होने की जरूरत नही. एजूकेशन शब्द एज्यूको से बना है जिसका मतलब होता है अंदर से लाना या विकसित करना. ना कि बाहर से ठूंसना. एक बार एकलव्य बनकर देखिये... आपको एजुकेशन का सही मतलब समझ आ जायेगा.

    ईश्वर पर विश्वास रखिये. उसे महसूस कीजिये. वो आपको हर कदम पर हिंट देता है. आपको बस समझना होता है.

    आपका भविष्य उज्ज्वल हो!

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