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शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

और सूखे पत्ते बचे रह गये ।

 

                                                                       इमेज गूगल साभार 


पेड़ के पत्तों के झुरमुट से ,

किरणें  सूर्य की झांकी ,

पिघलने लगी थी ,

पत्तों पर जमी बर्फ ,

पर रिश्ते बर्फ से जमे रह गये ।

 

बारिश में पेड़ों के पत्तों पर ,

बूंदों की आवाज सुनाई दी ,

मगर आंसुओं के गिरने की ,

आवाज सुनाई न दी ,

और अरमान सारे बह गये ।

 

कितने आहिस्ते निकले दिल से ,

कि पतझड़ में भी ,

पदचाप पैरों की सुनाई न दी ,

दिल में लग गई आग ,

और सूखे पत्ते बचे रह गये ।

 

धुंधले यादों की तरह ,

बिखरने लगे पत्ते सारे ,

समय चक्र के घेरे में ,

ढह गया ढेर यूं ही ,

हम खाली हाथ खड़े रह गये ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय जोशी सर, आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।

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  2. बहुत सुंदर दीपक भाई हृदय को छूने वाली पंक्तियां है

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय कामिनी मेम सादर नमस्कार ,

    मेरी इस प्रविष्टि् को चर्चा रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर शामिल करने के लिए बहुत आभार एवं सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. धुंधले यादों की तरह ,
    बिखरने लगे पत्ते सारे ,
    समय चक्र के घेरे में ,
    ढह गया ढेर यूं ही ,
    हम खाली हाथ खड़े रह गये ।

    भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय मनीषा मेम , आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन संदर्भ और समय का चक्र ।बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय जिज्ञासा मेम एवं मीणा मेम , आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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