कहते हैं की राजभाषा / राष्ट्रभाषा किसी राष्ट्र के विकास और समृद्धि मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है , और उसके साथ साथ स्थानीय स्तर की आमजन भाषा का विशेष योगदान रहता है । किंतु वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए लगता है की हमारे देश मैं राष्ट्र भाषा के साथ उपेक्षित और तिरस्कार पूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है । जब तब देश की राष्ट्रभाषा के उपयोग और उसके प्रचार और प्रसार की बात की जाती है किंतु यह बात सरकारी खानापूर्ति , भाषणों और हिन्दी दिवस जैसे समारोह तक सीमित रहती है , उसकी समृद्धि और विकास के लिए वैसे प्रयास नही किए जाते है जैसे की किए जाना चाहिए । यंहा तक की देश के शीर्ष स्तर के राजनेता , सरकारी नुमाइंदे भी अपनी राजभाषा का कम ही उपयोग करते नजर आते है । यंहा तक की उनके अपने बच्चे को वे गैर हिन्दी / गैर स्थानीय भाषा के स्कूलों मैं शिक्षा दिलाते हैं । जो की काफी मंहगे और उच्च स्तर की स्टेटस सिम्बोल वाले होते है । जिसका खर्चा आमजन वहन नही कर सकते हैं । ठीक इसी प्रकार आई आई ऍम और आई आई टी एवं अन्य उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली उच्च शिक्षण संस्थाओं मैं भी शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा / स्थानीय स्तर की आमजन की भाषा न होकर विदेश भाषा मैं होता है । परिणाम स्वरूप इन विशिष्ट और उच्च स्तर की शिक्षाओं मैं प्रवेश पाने वाले अधिकांश छात्र जो विदेशी भाषा मैं निपुण नही रहते है उन्हें या तो अपने अध्ययन को बीच मैं ही छोड़ देने हेतु मजबूर होना पड़ता है या फिर संस्थाओं द्वारा उन्हें निकाल दिया जाता है , जिससे इस प्रकार की छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित होना पड़ता है । वर्तमान मैं यह प्रचारित भी किया जा रहा है की यदि अच्छा रोजगार और नौकरी प्राप्त करना है तो विदेशी भाषा का ज्ञान होना या फिर विदेशी भाषा मैं शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक हैं । बहुराष्ट्रीय कंपनी भी इसी प्रकार के लोगों को अपनी कंपनी मैं नौकरी देने को आतुर रहती है । इस प्रकार की समस्या को उन लोगों को सामना करना पड़ता है जिनका आर्थिक और सामाजिक स्तर बहुत कमजोर होता है । इस प्रकार यह बात सामाजिक समानता की नीति पर कुठाराघात करते हुए नजर आती है ।
क्या बात है की हम आजादी की इतने वर्षों बाद भी अपने देश मैं राष्ट्रभाषा / आमजन की स्थानीय भाषा का राज कायम नही कर पाये हैं । अभी तक उच्च शिक्षा के विषयों का माध्यम हमारी राष्ट्रभाषा / आमजन की स्थानीय भाषा क्यों नही हो पायी है । जबकि विश्व के कई देश जिन्होंने अपनी राष्ट्रभाषा को पूरे समान के साथ अपना रखा है आज वे उत्तरोतर विकास कर रहे हैं । जिनमे जापान और चीन का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है , तो फिर हमारे देश मैं राष्ट्रभाषा / आमजन की स्थानीय भाषा इतनी उपेक्षित क्यों ?
अतः आवश्यक है की देश के विकास मैं सभी वर्गों और सभी लोगों का बराबर का योगदान मिल सके , इसके लिए यह आवश्यक है की राष्ट्रभाषा / आमजन की स्थानीय भाषा को पूर्ण सम्मान के साथ अपनाया जाना चाहिए । देश की उच्च उच्च से शिक्षण का माध्यम इन देशी भाषा मैं किया जाना चाहिए ।
यंहा किसी भाषा के विरोध की बात नही है वरन राष्ट्र हित मैं राष्ट्रभाषा / आमजन की स्थानीय भाषा को पूर्ण सम्मान के साथ अपनाए जाने की बात है ।
sahmat hun aapki baat se....
जवाब देंहटाएं