फ़ॉलोअर

सोमवार, 9 जून 2008

प्रशासन असहाय और मौन क्यों होता है.

आए दिन राजनैतिक पार्टी , वर्ग विशेष अथवा किसी संगठन द्वारा जुलुश , हड़ताल , धरना या फिर बंद या चक्काजाम का आयोजन कर सरकार अथवा प्रशासन के सामने अपनी मांगो को लेकर खड़े होते है । किंतु आजकल ये आयोजन आमजन के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे है । इन आयोजन मैं भाग लेने वाले प्रतिभागी और उनके नेता और प्रायोजक नेता क़ानून हाथ मैं लिए रहते है . कही रेल को रोकने हेतु पटरियों मैं बैठ जाना या फिर पटरियों को उखाड़ फेकना , सडको पर जाम की स्थिति पैदा करना , कही जनता की निजी संपत्ति अथवा देश प्रदेश की राष्ट्रीय संपत्ति को तोड़फोड़ और आग के हवाले कर नुकसान पहुचाना । प्रदर्शन कारियों और इन आयोजन के प्रतिभागियों द्वारा इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है और प्रशासन और सरकार मूक दर्शक बनी रहकर तमाशबीन बनी रहती है । कानून व्यवस्था का मखोल उड़ता रहता है , वह भी जाने माने और प्रख्यात नेताओं द्वारा जिनसे इसके पालन और शान्ति व्यस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी रहती है .
प्रदर्शन कारियों के रूप मैं मुट्ठी भर लोग उत्पात मचाते रहते है और इतनी बड़ी प्रशासन व्यवस्था असहाय सी खड़ी रहती है । जो आमजनता है जिसका इन आयोजन से सीधे तौर पर कोई सम्बन्ध नही होता है परेशानी झेलने को मजबूर होना पड़ता है . देश व प्रदेश की इतना बड़ा अमला उन लोगों के शान्ति पूर्वक जीने के अधिकार का हनन होते देखते रहती है . सभी को सुरक्षा उपलब्ध कराने मैं व्यवस्था नाकाम सिद्ध होती है ।
जैसा की इस समय गुर्जर आन्दोलन मैं हो रहा है , लोग रेल की पटरी पर बैठे है और कई महत्वपूर्ण रेल रद्द कर दी गई है , जिससे एक तो रेलवे को प्रतिदिन करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है , वही आमजन अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुचने मैं असमर्थ और असहाय खड़ी है . सड़कों पर जाम होने से भी आवागमन के साधन बंद हो जाते है . मूलभूत आवश्यकताओं वाली वस्तुओं और दवाइयों का लक्ष्य तक पहुचना मुश्किल हो जाता है , गंभीर मरीजो को अस्पताल जाना , बच्चों का स्कूल और कॉलेज जाना एवं नौकरी पेशा लोगों का गंतव्य तक पहुचना मुश्किल होता है । प्रतिदिन का काम करके रोजी रोटी कमाने वाले लोग ऐसे समय पर काम पर नही जा पाते है , इससे कई बार तो उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है . क्षेत्र मैं अशांति और तनाव का माहोल बनता है सो अलग . व्यापार , व्यवसाय और देश को भारी आर्थिक क्षति उठाना पड़ता है .
अतः आवश्यक है की इस प्रकार प्रदर्शन जब हिंसक , नुकसान दायक और दूसरे के जीने के अधिकार मैं खलल पैदा करने लगे तो उससे प्रशासन को शक्ति पूर्वक निपटना चाहिए . इस प्रकार के आयोजन होने के पहले इनके प्रायोजक नेताओं को शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए अनुमति प्रशासन से लेना चाहिए , जिसमे इस बात का उल्लेख होना चाहिए की आयोजन से किसी प्रकार की अव्यवस्था पैदा होने या फिर किसी प्रकार की नुकसानी होने या फिर शांति भंग होने पर पूरी जिम्मेदारी उनकी होगी और प्रशासन उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र होगा .

1 टिप्पणी:

  1. बिल्कुल सहमत हैं आपसे. बहुत अफसोस होता है जब राष्ट्रीय संपति को नुकसान पहुँचाया जाता है हड़तालियों के द्वारा.

    जवाब देंहटाएं

Clickhere to comment in hindi

नील लगे न पिचकरी, #रंग चोखा आये ,

  नील लगे न #पिचकरी, #रंग चोखा आये , कीचड का गड्डा देखकर , उसमें दियो डुबाये .   ऊंट पर टांग धरन की , फितरत में श्रीमान , मुंह के बल...