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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

पूछ रही है #महफिलें ।


शाम ने #बांधा समा 

रात ने दी #दस्तक 

अब पूछ रही है #महफिलें 

जागना है कब तक । 


दौर पर दौर चले 

जाम के लव तलक

अब पूछ रहे है प्याले 

रहना होश में कब तक ।


चाँद भी डूबा डूबा है 

चाँदनी भी है मदमस्त 

पूछ रही है जुगनू 

चमकते रहना है कब तक । 


साँसों से साँसो की खुशबू 

तूंफा उठाये दिलकश 

पूछ रही है फूलों की खुशबू 

बागों में ही रहना है कब तक । 


चल पड़ी है ठंडी बयार 

मिलने लगी है दिलों को ठंडक 

सोच रही है अब महफिलें 

कि जल्द मिलेगी राहत । 

             *** दीपक कुमार भानरे ***  

2 टिप्‍पणियां:

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