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रविवार, 3 फ़रवरी 2019

है पथ# पग# पग पर पथरीले#

है पथ पग पग पर पथरीले , 
अभी दूर है मंजिले।

कितनी सहूलियतें त्यागनी है ,
कितनी ही रातें जागनी है , 
कितनी बाधायें लांघनी है ,
कठिन परिस्थितियां साधनी है ,
पड़ जायेँगे पाँव में छाले ,
है पथ पग पग पर पथरीले ,
 अभी तो दूर है मंजिले।

होती आंख मिचोली अनायास है ,
कभी दूर तो कभी तू लगती पास है ,
न मिलने पर हो जाते है उदास है ,
फिर भी करते बार बार प्रयास है ,
सच से साकार सपनों से सिलसिले ,
चुभते कम है पथ पग पग पर पथरीले,
अब दूर न होगी मंजिले।

श्रम के तप से तपता ताप है ,
अग्नि परीक्षा की बेदी हुई राख है ,
सभी बाधायें जलकर ख़ाक है ,
किन्तु परन्तु की दुविधा समाप्त है ,
घटि घनघोर घटायें आसमां है नीले
नहीं लगते पथ पग पग पर पथरीले,
अब तो मुट्ठी में मचलेंगी मंजिले ,
अब दूर न होगी मंजिले। 

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