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रविवार, 6 अप्रैल 2008

जल पर मानव मात्र का ही अधिकार नही !

गर्मी क्या आई की फिर लगे हाय तौबा मचाने पानी के लिए । पड़ोस के लोग आपस मैं पानी के लिए लड़ रहे है तो पानी के लिए कोई आन्दोलन पर सड़क पर उतर आता है , तो कोई मेरी तरह कोई पानी बचाने की नसीहत देने लगता है कोई कहता है की वर्षा के जल को रोको तो कोई कहता है की पानी की वेर्वादी न करो । यह सब सिर्फ़ गर्मी के मौसम मैं पानी की समस्या रहने तक होता है और जैसे ही वारिश का मौसम आया सब कुछ भूलकर फिर अपने काम धाम मैं लग जाते है । किंतु इस बात पर हम गंभीरता से कब सोचेंगे यह तो वक्त ही जाने । फिर भी हमे समय रहते चैत जाना चाहिए ।

पानी बहुत कीमती हो गया है । कीमती तो पहले से था । किंतु हो सकता है भविष्य मैं वह पैसा देने पर भी नही मिले । और तो और उसे कृत्रिम रूप से पैदा भी नही किया जा सकता है । क्योंकि ऐसी वैज्ञानिक विधि भी इजाद नही हो पाई है और न ही ऐसी कोई जादू की छड़ी है जिसको घुमाकर सभी को दिलाई जा सके । जीवन के लिए अनमोल पानी या जल , जिस पर मानव मात्र नही वरन समस्त वनस्पति और प्राणी जगत का भी हक़ है । हमने उसे सहेजने की भी तो कोशिश नही की हैं । पहले से विद्यमान झरने , तलब , कुओं और बब्दियों को तो नष्ट होने की कगार पर पंहुचा दिया साथ ही नदी व नाले के अस्तित्व को भी खतरे मैं डाल दिया है । और तो और जमीन से निकलकर उसे बरवाद करने पर तुले हुए हैं । क्या हम अगला विश्व युद्ध करवाकर ही मानेंगे । अब तो हमें चेत जाना चाहिए । हर निजी तथा शाश्कीय बिल्डिंग मैं वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अपनाकर , नए जंगलो को तैयार कर , नदियों व तालाबों , कुओं व बब्दियों का जीर्णोद्धार कर वर्षा का जल सहेजना होगा । बंजर व बेकार पड़ी निजी व राजस्व भूमि मैं निजी व शाश्किया संस्था के सहयोग से तलब खुदवाकर एवं नदी व नालों मैं बाँध बनाकर पानी को रोककर जल स्तर को बढाया जाना चाहिए । इनमे मछली पालन , अन्य जलीय खेती करवाकर और संचित जल को सशुल्क सिंचाई हेतु देकर आर्थिक लाभ का साधन बनाया जा सकता है । स्कूली शिक्षा एवं प्रचार प्रसार के माध्यम से लोगों को जल संग्रहण एवं जल के किफायती उपयोग हेतु प्रेरित किया जा सकता है । अतः इस हेतु समुचित प्रयास किया जाना चाहिए , तभी हम समस्त प्राणी जगत और वनस्पति जगत का ख्याल करते हुए विश्व को आने वाली बिभिशिका से बचा सकते हैं।

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