बेशक आज देश मैं मंहगाई मैं बेतहाशा ब्रद्धि हुई है । जिससे आम लोगों का जीना दूभर हो रहा है । लोगों को दो वक्त की रोटी जुटाने मैं भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और सरकार और सरकार की नीतियां बढ़ती मंहगाई की रफ़्तार मैं रोक लगाने मैं असफल रही है .
किंतु हमारी कुछ खामियां भी इस बढ़ती मंहगाई के लिए जिम्मेदार हैं । जैसे हर छोटी छोटी बातों के लिए दूसरे पर निर्भर रहना हमारी नियति बनती जा रही है । अब हम अपनी हर जरूरतों के लिए दूसरों का मुंह ताकते रहते है . हम हमारी सम्रध प्रकृति से जुड़ी हुई संस्कृति और संस्कारों से विमुख होते जा रहे हैं . फलस्वरूप हमारी इस आदत का फायदा बड़े व्यापारी और विदेशी कंपनी उठा रही है . और वे चाहते भी यही है . हम शारीरक और मानसिक रूप से पंगु होकर दूसरों पर निर्भर हो जाएं .
जैसे हम अपनी सम्रध आयुर्वेदिक चिकित्सा जिसमे कई बीमारियों का इलाज घर पर ही है , को छोड़कर हर छोटी छोटी बात पर अंग्रेजी दावा पर निर्भर है . नीम्बू पानी , लस्सी और पोष्टिक खाद्य पदार्ध को छोड़ कर विदेशी खाद्य पदार्थ जैसे ठंडा पेय , पिज्जा और बर्गर को अपनाना . विदेशी पहनावा और विदेशी सौन्दर्य प्रसाधन साधनों को अपनाना .
घर पर बड़ी , पापड़ और अचार बनाना , त्याहरों मैं मिठाई और पकवान बनाना , नहाने और बाल धोने के लिए देशी नुस्खे अपनाना । ये सब तो हम भूलते जा रहे है और चौपाटी , होटल और रेस्तारों की संस्कृति को अपनाने लगे है . इस प्रकार हर छोटी छोटी सी चीजों के लिए दुकानों और बाजारों की और दौड़ना . अतः दूसरों पर बढ़ती निर्भरता देश मैं मंहगाई बढ़ाने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ।
आवश्यकता है इन छोटी बातों पर ध्यान देकर अपनी पुरानी परम्परा की और लौटने की . जैसे घर पर ही घरेलु समानो को बनाना . घर की खाली जगहों और क्यारियों मैं सजावटी पौधों की अपेक्षा सब्जियों और फलों के पौधों को स्थान देना . देशी घरेलू आयुर्वेदिक चिकित्सा की और लौटना . नजदीक के स्थानों हेतु इधनो से चलने वाले वाहनों के स्थान पर पैदल और मानव श्रम आधारित वाहनों को तरजीह देना . सामुहिक रूप से वाहनों के स्तेमाल को बढावा देना . कृषि कार्य मैं देश उन्नत कृषि यंत्रों के उपयोग और जैविक और गोवर खाद को बढावा देना । इस प्रकार कई छोटी छोटी बातों को ध्यान मैं रखकर , जीवन मैं हर छोटी छोटी बातों के लिए दूसरों पर निर्भरता को कम कर अपने हिसाब से बाज़ार को नियंत्रित कर मंहगाई को तो रोक सकेंगे साथ ही धन के विदेश मैं प्रवाह को भी रोक सकेंगे .
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सोमवार, 21 अप्रैल 2008
कुछ तो हमारे हाथ मैं है !
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