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मंगलवार, 16 जून 2009

शासकीय लोगों द्वारा ही - शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा / बेजा उपयोग !

देश अथवा प्रदेश के मंत्री हो अथवा बड़े अधिकारी हो अथवा अधिक वेतन और ऊँचे ओहेद वाले कर्मचारी है प्रायः यह देखने मैं आता है की वे स्वयं अथवा उनके परिजन शासकीय संस्थाओं जैसे स्कूल , अस्पताल अथवा अन्य शासकीय संस्थाओं से सेवा प्राप्त करने हेतु जाने से कतराते हैं । क्या कभी ये लोग सरकारी स्कूलों मैं अपने बच्चे को पढाते हुए पाये जाते हैं , क्या सरकारी अस्पतालों से स्वास्थय सुविधा प्राप्त करते हुए पाये जाते हैं क्या इन लोगों को शासकीय राशन की दुकानों से राशन प्राप्त करते हुए देखा गया है या फिर राज्य परिवहन अथवा सड़क परिवहन की बसों एवं वाहनों से सफर करते हुए देखा गया है या कभी रसोई गैस के लिए कतार मैं लगते हुए अथवा चक्कर लगाते हुए देखा गया है । हाँ इसमे अपवाद जरूर हो सकते हैं । आख़िर ऐसा क्यों ? जिन लोगों के हाथ मैं ही जनता के हित और विकास हेतु नीतियां बनाने और उसके प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन की जिम्मेदारी होती है वे ही इस तरह की सेवा प्रदान करने वाली शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा करते हुए नजर आते है । इस उपेक्षा पूर्ण रवैया का ही परिणाम है की आज इस तरह की संस्थाओं मैं व्यवस्थाओं का आलम वाद से बत्तर होते जा रहा है । आम जनता को इन बत्तर व्यवस्थाओं के साथ जीने हेतु छोड़ दिया जाता है । प्रश्न यह उठता है की जब एलिट वर्ग के लिए इन संस्थाओं की सेवा गुणवत्ता युक्ता और बेहतर नही है तो फिर ये बिना ऊँचे ओहदा , प्रभाव और निम्न आय वाली आम जनता के लिए कैसी बेहतर हो सकती है ।
इसके विपरीत जन्हा तय मापदंड और नियम विरुद्ध बेजा लाभ प्राप्त करने की बात हो तो ये लोग वंहा भी पीछे नही रहते हैं । जैसे सम्बन्धियों को सरकारी लाभों , कामों अथवा नौकरियों मैं निय्क्तियों हेतु सिफारिश करना , स्वयं अथवा स्वयं के जान पहचान वालों को तय मापदंडो अथवा नियम विरुद्ध कार्यों हेतु दबाब डालना , सरकारी वाहनों एवं अन्य सुबिधायों का बेजा इस्तेमाल करना , इत्यादि इत्यादि ।

अतः जरूरी है की शासकीय संस्थाओं जैसे स्कूल , अस्पताल अथवा अन्य शासकीय संस्थाओं से सेवा प्राप्त करना देश के प्रत्येक नागरिक (चाहे वह छोटा अथवा बड़ा हो ) हेतु अनिवार्य किया जाए । किसी विशेष परिस्थितियों मैं ही निजी अथवा प्राइवेट संस्थाओं से सेवा लेने हेतु अनुमति दे जाए । तभी शासकीय संस्थाओं की व्यवस्थाओं मैं सुधार हो सकेगा । जब देश अथवा प्रदेश के मंत्री अथवा बड़े अधिकारी अथवा अधिक वेतन और ऊँचे ओहेद वाले कर्मचारी इन संस्थाओं मैं सेवा प्राप्त करने हेतु जायेंगे तभी ये नीति निर्माता और क्रियान्वन करने वाले लोगों के सामने सही और व्यवहारिक कठिनाई और समस्या सामने आ पाएगी और बेहतर ढंग से इनका निराकरण कर सकेंगे । एकाध दिन अथवा कुछ घंटों के आकस्मिक निरिक्षण से पुर्णतः व्यवस्थाओं को समझने और उसमे सुधार किया जाना सम्भव नही है । क्योंकि कुछ समय के लिए तो कमियों को छुपाया जा सकता है और बनाबटी और दिखावटी व्यवस्था को कुछ समय के लिए बनाए रखा जा सकता है । अतः एक बेहतर व्यवस्था को बनाये रखने और सफल क्रियान्वयन हेतु नीति निर्माता और क्रियान्वन करने वाले लोगों का इस व्यवस्था का अंग बनने और उसके भागीदार होना जरूरी है ।

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