हर गली में चलकर देखा ,
वक्त और चाल बदलकर देखा ,
कितनी राह तकेंगे लो ,
किस मोड़ पर मिलेंगे वो ।
कितनी ही ठोकर खाई ,
अपनों से भी हुई रुसवाई ,
दिल डूब रहा अब तो ,
किस मोड़ पर मिलेंगे वो ।
पत्थर दिल भी पिघल जाते हैं,
ढूंढे से भगवान भी मिल जाते हैं,
अब मिल जाओ ज्यादा न बनो ,
किस मोड़ पर मिलेंगे वो ।
मोड़ नहीं सकते कदमों को ,
छोड़ नहीं सकते सपनों को ,
जलती रहेगी आशा की लौ ,
किसी मोड़ पर मिलेंगे वो ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 3 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरचना को ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 3 नवंबर 2020 को साझा करने के लिए यादव सर और उनकी टीम का बहुत आभार और धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजोशी सर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर।👌
जवाब देंहटाएंशिवम सर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
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