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गुरुवार, 12 नवंबर 2020

क्योंकि वो तो उधार का है आसमां !

गर पा गए उड़ने का हुनर ,

और पा गए उड़ने का माद्दा ,
न समझ खुद को सितारा ,
न बसा अपना एक अलग जहां ,
लौट इक दिन वापस आना है ,
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।

उड़ते उड़ते जब थक जाओगे ,
किसी उलझन में उलझ जाओगे ,
मुसीबतों में तब हमदर्द बनकर ,
अपने ही बनेंगे  इक आसरा , 
काम न आएगा सितारों का वो जहां, 
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।

ख्वाहिशों को अपनी दफनाकर , 
मुसीबतों का पहाड़ उठाकर ,
जो सहूलियतें के पंख देते है लगवा , 
उन अपनों का सितारा बनकर, 
बना अपना ही आसमां  ,
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।


12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. पाण्डेय सर आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु सादर धन्यवाद ।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. जोशी सर आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु सादर धन्यवाद ।

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. भारद्वाज मेम मेरी रचना को चर्चा शुक्रवार ( 13-11-2020) को "दीप से दीप मिलें" (चर्चा अंक- 3884 ) में शामिल करने हेतु एवं आमंत्रण हेतु सादर आभार एवं धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बना अपना ही आसमां... सुंदर, सकारात्मक रचना 🙏

    दीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🚩🙏
    - डॉ शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शरद मेम आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु सादर धन्यवाद ।
      आपको भी दीपावली की बहुत बहुत मंगलकामनाएं ।

      हटाएं
  6. सुन्दर रचना - -दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  7. शांतनु सर आपकी बहुमूल्य प्रतिकृया हेतु सादर धन्यवाद ।
    आपको भी दीपावली की बहुत बहुत मंगलकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  8. उड़ते उड़ते जब थक जाओगे ,
    किसी उलझन में उलझ जाओगे ,
    मुसीबतों में तब हमदर्द बनकर ,
    अपने ही बनेंगे इक आसरा ,
    काम न आएगा सितारों का वो जहां,
    क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।...बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।

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  9. आदरणीया मेम आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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