साथ चलते चलते उनके ,
आ गया इतना तो हुनर ,
साथ चलते चलते कैसे ,
कर जाते असर दिल पर ।
मुस्कुराकर हर बार मिले ,
सुकून चेहरे पर झलके ,
यूं ही हो जाते दिल के मेहमा ,
अपनेपन का अहसास जताकर ।
धूप हो या छांव पड़े ,
रहते है वो साथ खड़े ,
लगते है वो तो रहनुमा ,
जब थाम लेते हैं हाथ बढ़ाकर ।
साथ चलते चलते उनके ,
आ गया इतना तो हुनर ,
साथ चलते चलते कैसे ,
कर जाते असर दिल पर ।
अतिसुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
रवि सर और मयंक सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअनीता मेम , मेरी रचना को आपकी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
सच साथ का असर हो ही एक-दूजे पर हौले हौले से
जवाब देंहटाएंसाथ चलते चलते उनके ,
जवाब देंहटाएंआ गया इतना तो हुनर ,
साथ चलते चलते कैसे ,
कर जाते असर दिल पर ।
बहुत खूब......
सिन्हा मेम एवं रावत मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंहुनर आ गया और साथ का महत्त्व भी बढ़ गया ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
संगीता मेम, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा । बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसाथ चलने से कुछ हुनर तो आ ही जाते हैं।
सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसाथ चलते चलते उनके ,
आ गया इतना तो हुनर ,
साथ चलते चलते कैसे ,
कर जाते असर दिल पर ।,,,,,,,,बहुत सुन्दर एंव भावपूर्ण ।
अमृता मेम, मधुलिका मेम एवं मन कि वीना , आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत धन्यवाद जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसिन्हा सर एवं देहलीवाल मेम आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लेखन सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएं