मुझे तुम #अच्छे नहीं लगते ,
जब हो जाते तुम #नाराज,
और उठा लेते सर पर आकाश ,
फिर सुनते नहीं कोई बात ।
मुझे तुम अच्छे नहीं लगते ,
जब लेकर हाथों में हाथ ,
तुम चलते नहीं मेरे साथ ,
कदमों को मेरे कर देते अनाथ ।
मुझे तुम अच्छे नहीं लगते ,
जब भीगते नहीं भरी #बरसात ,
जब कूदते नहीं पानी में छपाक,
बस कहते #तबियत हो जायेगी नासाज ।
मुझे तुम अच्छे नहीं लगते ,
जब करते अच्छे काज ,
मिलते नहीं #तारीफों के अल्फाज,
पर कमियों पर मिलती झट #डांट।
मुझे तुम अच्छे नहीं लगते ,
जब होता चिंता भरा #ललाट,
रहते गुमसुम और #उदास ,
होठों पर लेते चुप्पी साध ।
मुझे तुम अच्छे नहीं लगते ,
जब डालते नहीं मुझे कोई #घास,
देखकर भी कर देते नजरअंदाज,
और समझते खुद को #लाट साब।
****दीप"क कुमार भानरे****
Bahut sahi :-)
जवाब देंहटाएंBahut Badhiya Sirji
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-02-2023) को "फिर से नवल निखार भरो" (चर्चा-अंक 4643) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शानदार सृजन मन के सरल भाव प्रेषित करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक सीर , मेरे इस ब्लॉग प्रविष्टि को , आज रविवार के अंक "फिर से नवल निखार भरो" की चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आदरणीय कोठारी मेम , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।