आज फिर उन्हें #सताने का मन करता है ,
आज फिर #रूठ जाने का मन करता है ।
कर दूं बातें उनकी अनसुनी ,
बैठ जाऊं मुंह फेरकर कहीं ,
नजर न आऊं रहकर भी वहीं ,
कुछ देर उनसे खुद को छुपाने का मन करता है ।
कह दूं उन्हें कि है वे नासमझ ,
बातें करते हो बड़ी असहज ,
कई बार तो लगते हो गलत ,
उनके मन को थोड़ा #उलझाने का मन करता है ।
नाराजगी की दिखाऊं इक झलक ,
किसी बात का जवाब दूं कड़क ,
बढ़ा दूं उनके मन की थोड़ी तड़फ ,
कुछ इस तरह से उनको #बहकाने का मन करता है ।
कहीं बात न जाये बिगड़ ,
कहीं वो ही न जा ये अकड़ ,
तो फिर हो जायेगी मुश्किल डगर,
कभी ऐसे इरादों से तौबा कर जाने का मन करता है ।
आज फिर उन्हें सताने का मन करता है ,
आज फिर रूठ जाने का मन करता है ।
****दीपक कुमार भानरे****
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-03-2023) को "चैत्र नवरात्र" (चर्चा अंक 4650) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही प्यारी रचना।।। अनन्त शुभकामनाएं स्वीकार करें।।।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सिन्हा सर , बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंबहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओंकार सर , आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंबहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंआदरणीय रूपा मेम , बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंआदरणीय मयंक सर ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (26-03-2023) को "चैत्र नवरात्र" (चर्चा अंक 4650) पर शामिल करने के लिये , बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
वाह! रूठना-मनाना मित्रता में और गहराई ला देता है पर आजकल लोग अपने प्रति अति संवेदनशील और अन्य के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं, यह विधा खोती जा रही है
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनीता मेम , सही कहा आपने , बहुत धन्यवाद । सादर ।
हटाएंभावों को सुंदर शब्दों में पिरोया है। सराहनीय रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम , आपकी सराहनयुक्त प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद । सादर ।
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