मुरझा गई पेड़ों की पत्ती,
दिखते नहीं आंगन में पक्षी,
बूंद बूंद पानी को तरसती ,
पशु पक्षी इंसानों की बस्ती ।
कंकाल बना देह नदी का ,
चटक गया सीना धरती का,
पत्थर पहाड़ तपे भट्टी सा ,
जैसे स्नान किये सब अग्नि का ।
चलता हल धरती को चीर ,
चुभती गर्मी तन बहता नीर ,
घर में बैठी दुबक के भीड़ ,
बाहर खेला करते श्रमवीर ।
आसमां को अब तकते नयन ,
सूर्य देवता समेटो गर्मी प्रचंड,
अब न करेंगे हम प्रकृति को तंग,
सहेजेंगे सवारेंगे प्रकृति कण कण ।
#पर्यावरण दिवस 05 जून, एक पेड़ लगाएं वेरी सून ।
मानव की भूलों से वैश्विक तापमान बढ़ता ही जा रहा है, प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत धन्यवाद ।
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद सर ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद सर ।
हटाएंआदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंमेरी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 जून 2024 में शामिल करने के लिए, बहुत धन्यवाद । सादर ।