सांसद , विधायक और मंत्री महोदय अपने वेतन और सुबिधाओं को बढ़ाने मैं लगे हुए हैं । वह भी बिना किसी तय मापदंड और आधार के । न कोई जिरह , न कोई शोरगुल , न कोई विरोध , सबकी मैजे थपथपाकर खुशी खुशी स्वीकृति । एक बार पद प्राप्त कर लेने मात्र से ताउम्र पेंशन के हक़दार।
वही दूसरी और संसद , विधानमंडल मैं हंगामा , हाथापाई , मारपीट एवं दिन भर की कार्यवाहिओं को बाधित करना । जनहित व देशहित के मुद्दों को दरकिनार कर अपनी ढपली अपना राग अलापना । जनता की खून पसीने की कमाई को व्यर्थ बहाना पर कोई रोकने वाला नही ।
देश मैं चक्का जाम , जुलुश , धरना प्रदर्शन कर जनता की परेशानियों को बढ़ाना , कोई बोलने वाला नही ।
अपने पक्ष मैं वोट देने के लिए वोटरों की खरीद फरोख्त करना । अपने क्षेत्र से चुनाव के बाद लगातार गायब रहना । भ्रष्ट्राचार , हेराफेरी , अन्डर वर्ल्ड से संबंधों होने का लगातार आरोप लगना , पर कार्यवाहियों के नाम पर लीपापोती ।
न कोई योग्यता का निर्धारण , न कोई पुलिस वेरीफिकेशन और न कोई अनुभव के आवश्यकता , फिर भी हजारों , लाखों और करोडों लोगों की भावनाओं के प्रतिनिधितव के जिम्मेदारी , प्रदेश व देश को चलाने की जिम्मेदारी ।
वही एक सरकारी चपरासी के नौकारी के लिए योग्यता , पुलिस वेरीफिकेशन और अनुभव की आवश्यकता । यहाँ तक की पेंशन बंद करने की भी बात हो रही है । परिवार नियोजन और उम्र की भी बाध्यता । वेतन भत्ते बढ़ाने के लिए वेतन आयोग की सालों की जद्दोजहद ।
जब एक चपरासी की नौकरी के लिए इतनी सारी बाध्यता, तो प्रदेश व देश को चलाने वालों के लिए इन सब बातों के कोई मायने नहीं ।
क्या इन सब बातों को सोचकर हम सब खिन्न नही हैं , आख़िर कब तक ऐसा चलेगा ।
कृपया टिप्पणी देवे।
नही जी यहा कोई माप नही नही चलेगा,आप तो बस चुन सकते है (वोट दे कर) दंड (लाठी) बंदा अपनी मर्जी से लेगा और जहा चाहे पेलेगा ,यही डेमोक्रेसी है जी..:)
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