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शनिवार, 29 मार्च 2008

नम्बरों की होड़ मैं खोता बचपन .

दौर आया है परिक्षायों का , सभी छात्र इस उद्देश्य से जी तोड़ मेहनत कर रहे है की अधिक अधिक से नम्बर किसी भी तरह हासिल किया जाए । न रात का ख्याल न दिन का , न खाने का और न पीने का और न जागने का और सोने का . अपनी साख और व्यसयिकता चलते स्कूल मेनाज्मेंट और शिक्षक एवं साथ ही माता पिता द्वारा भी सख्त हिदायत दी जाते है की तुम्हे अच्छे से अच्छे नम्बर लाना है । दोस्तों के बीच भी अच्छे नम्बर लाने की होड़ भी है। अच्छे नम्बर लाकर अच्छे स्कूल या फिर अच्छे कॉलेज मैं दाखिला लेने की मजबूरी भी है।
इस प्रतिस्पर्धी एवं व्यावसायिकता परख शिक्षा वाले युग मैं जन्हा सिर्फ़ गहन अध्ययन आधारित ज्ञान को नहीं वरन उनके द्वारा प्राप्त नम्बरों को महत्व दिया जाता है , भले ही वह उस छात्र ने दिन रात रटकर शार्ट कट तरीके से प्राप्त किया हो । शिकशों द्वारा भी विषयों के गहन अध्ययन पर ध्यान न देकर कोर्स को पूरा करने के उद्देश्य से शार्ट कट तरीके से अच्छे नम्बर प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती है । अच्छे नम्बर लाने की होड़ मैं माता पिता भी बच्चे को बंधुआ मजदूर के तरह पूरे समय पढ़ाई से बाँध रखते है । सुबह उठते ही स्कूल , स्कूल से फिर टुशन क्लास वह भी हर विषय के लिए अलग अलग जगह । बेचारा छात्र स्कूल व टूशन जाने मैं और सारे समय उनका होम वर्क करने मैं जुटा रहता है । कब वह खेलने कूदने बाहर जाए , कब वह सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों मैं भाग ले , और कब वह पारिवारिक सदस्यों के साथ समय बिताएं ।
परिणाम यह होता है की अपना बचपन और नैसर्गिक प्रतिभा को दरकिनार कर अच्छे नम्बर लाने की आपाधापी मैं कुछ तो अपना संतुलन और आत्मविश्वाश बनाये रखते हैं , किंतु कुछ कमजोर मन और आत्मविश्वाश व पढ़ाई मैं रूचि न रखने वाले बच्चे टूटकर ख़ुद को नुकसान पहुचाने वाले और आत्महत्या करने जैसे घातक कदम को उठाने हेतु मजबूर हो जाते हैं । आख़िर कब हमारी यह नम्बर आधारित शिक्षा पद्धति मैं बदलाब आएगा । इस सम्बन्ध मैं गाहे बगाहे बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों द्वारा आवाज उठाई जाती रही है किंतु समय के साथ वह भी कहीं गूम हो जाती है ।
आवश्यकता है लोर्ड मैकाले की क्लर्क को तैयार करने वाली शिक्षा मैं आमूल चूल परिवर्तन की । बच्चों की नैसर्गिक रूचि आधारित शिक्षा को बढावा देने की , जिसमे भारतीय परिवेश आधारित गुणवत्ता युक्त एवं प्रायोगिक शिक्षा को अधिक से अधिक स्थान मिले , उबाऊ पुस्तकों और बस्तों का बोझ कम हो , स्कूलों मैं तनाव रहित , सहयोगात्मक और दोस्ताना वातावरण निर्मित करने की , शिक्षा के व्यवसायी कारन पर रोक लगाकर नैतिक , सांस्कृतिक एवं व्यवहारिक शिक्षा पर जोर देने की । माता पिता को भी बच्चों के रूचि और रुझान को देखते हुए उनके विषय चयन और शिक्षा प्राप्ति पर ध्यान देना चाहिए । इस प्रकार शिक्षा पद्धति एवं प्रतिभा चयन तरीके मैं परिवर्तन एवं बच्चों की नैसर्गिक रूचि आधारित शिक्षा पद्धति अपनाने की । तभी हम अधिक से अधिक अंको को पाने की आपाधापी मैं खोते बचपन को बचा सकेंगे ।

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