अब तो आदत सी हो गई है इस दिल#dil को समझाने की ।
नहीं होती है मुकम्मिल मंजिल जिंदगी के हर फंसाने की ।
होती है बात पत्थर उछालकर आसमान में छेद कर जाने की।
बातें है बातों का क्या सब बातें है दिल को भरमाने की ।
चार किताब पढ़कर तमन्ना की उन बातों को आजमाने की ।
पर इन सबसे से इतर कुछ और ही दिखी रंगत जमाने की ।
होती रही हर कोशिश हर शख्स को खुश कर अपनाने की ।
मिली है ख़बरें सीधे लोग और सीधे पेड़ को काटे जाने की ।
जमाने में और भी गम है छोड़ दो दीप शिकायतें जिंदगानी की
अब तो आदत सी हो गयी इस दिल को यूँ ही समझाने की।
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