ग़ुम हो गए हैं कहां मेघा , कहां रूठ चली गयी है वर्षा ।
इंतज़ार मैं आँखे सूखी , कैसे मिटे तन मन की तृष्णा ।
है नीर बिना ताल सूखा , ना कल कल करे सरिता ।
ताप्ती हुई है ये धरती, बिन पानी है सब तरसना ।
है खेतों ने खोई रौनक , बिलकुल भी चले बस ना ।
उदासी में गुम है प्रकृति , कैसे दुनिया में गढ़े नई रचना ।
है सबकी यही तमन्ना , सब हिलमिल करे उपासना ।
ऐसा हो दीप करिश्मा, आकर काले मेघा लगे बरसना ।
इंतज़ार मैं आँखे सूखी , कैसे मिटे तन मन की तृष्णा ।
है नीर बिना ताल सूखा , ना कल कल करे सरिता ।
ताप्ती हुई है ये धरती, बिन पानी है सब तरसना ।
है खेतों ने खोई रौनक , बिलकुल भी चले बस ना ।
उदासी में गुम है प्रकृति , कैसे दुनिया में गढ़े नई रचना ।
है सबकी यही तमन्ना , सब हिलमिल करे उपासना ।
ऐसा हो दीप करिश्मा, आकर काले मेघा लगे बरसना ।
बरसेंगे जरूर एक दिन
जवाब देंहटाएंबहुत सही
कविता मेम , आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
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