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पेड़ के पत्तों के
झुरमुट से ,
किरणें सूर्य की झांकी ,
पिघलने लगी थी ,
पत्तों पर जमी बर्फ
,
पर रिश्ते बर्फ से
जमे रह गये ।
बारिश में पेड़ों के
पत्तों पर ,
बूंदों की आवाज सुनाई
दी ,
मगर आंसुओं के गिरने
की ,
आवाज सुनाई न दी ,
और अरमान सारे बह
गये ।
कितने आहिस्ते निकले
दिल से ,
कि पतझड़ में भी ,
पदचाप पैरों की सुनाई
न दी ,
दिल में लग गई आग
,
और सूखे पत्ते बचे
रह गये ।
धुंधले यादों की तरह
,
बिखरने लगे पत्ते
सारे ,
समय चक्र के घेरे
में ,
ढह गया ढेर यूं ही
,
हम खाली हाथ खड़े रह
गये ।
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी सर, आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दीपक भाई हृदय को छूने वाली पंक्तियां है
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सर जी
जवाब देंहटाएंआदरणीय कामिनी मेम सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् को चर्चा रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर शामिल करने के लिए बहुत आभार एवं सादर धन्यवाद ।
धुंधले यादों की तरह ,
जवाब देंहटाएंबिखरने लगे पत्ते सारे ,
समय चक्र के घेरे में ,
ढह गया ढेर यूं ही ,
हम खाली हाथ खड़े रह गये ।
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना!
आदरणीय मनीषा मेम , आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजीवन संदर्भ और समय का चक्र ।बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जिज्ञासा मेम एवं मीणा मेम , आपकी उत्साहवर्धक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
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