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बुधवार, 1 सितंबर 2021

बेड़ियों में जकड़ती अफगानी नारी !



बेड़ियों में जकड़ती अफगानी नारी ,

तमाशबीन बनी है ये दुनिया सारी ।


बंदिशें पर बंदिशें लगनी है जारी ,

पिंजरा बनता जा रहा बड़ा और भारी ।

धरी रह गई तरक्की और समझदारी ,

झट से बदल गई उनकी दुनिया सारी । 

उनकी ही आज़ादी के बने है शिकारी ,

उनके लिये ही सब बंदिशें है जारी ।

डरी सहमी सी है सब बेचारी ,

छाई है बस बेबसी और लाचारी ।

मदद की आस में सहती अत्याचारी ,

कोई तो आयेगा मदद को हमारी । 


बेड़ियों में जकड़ती अफगानी नारी ,

तमाशबीन बनी है ये दुनिया सारी ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. सच में अफगान और अफगानी नारियों का दर्द बेइंतहा हो चुका है हम लोग भी सिर्फ सहानुभूति रख रहे हैं उन्हें मदद का इंतजार होगा
    बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय भारद्वाज मेम
    मेरी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर चर्चा करने एवं चर्चा में आमंत्रित करने हेतु सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सुधा मेम ,
    सही कहा आपने , हम सिर्फ सहानुभूति ही रख सकते है और हम सब स्थिति अच्छी होने की आशा कर सकते है ।
    आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रत्यक्ष सत्य को एक बार फिर मुखरित होती कविता

    जवाब देंहटाएं
  6. मर्माघाती व्यथा का कोई तो छोर मिले । उनके कल्याण के लिए कोई तो हल मिले ।

    जवाब देंहटाएं
  7. यथार्थ का हृदय स्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय डबराल सर , अमृता मेम, अनुराधा मेम और कोठारी मेम ,
    आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के साथ मेरे ब्लॉग में आने के लिए सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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