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यूं न दिखाया करो यहां ,
जमाने को अपने जख्म ।
होता है नमक हाथों में ,
पर पास होता नहीं मरहम
सामने तो बनते हैं हमदर्द ,
पर पीछे पीठ कुरेदते हैं जख्म ।
जख्म तो सहलाते नहीं है ,
पर बढ़ा जाते हैं दर्दे गम ।
साथ खड़े रहने का तो यहां ,
जमाना यूं ही निभाता रसम ।
मुश्किलों में जो ढाल बन जाये ,
वो लोग होते हैं बहुत कम ।
खुद ही उलझना पड़ता यहां ,
हालात कितने भी ढाये सितम ।
हर हमराही हमदर्द होता है,
मन से निकाले यह वहम ।
यूं न दिखाया करो यहां ,
जमाने को अपने जख्म ।
होता है नमक हाथों में ,
पर पास होता नहीं मरहम ।
सच को कहती बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता मेम, आपकी बेहतरीन प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजीवन की इन कड़वी सच्चाइयों को स्वीकार करके आगे बढ़ते रहना ही सुखी जीवन का मंत्र मालूम देता है :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवि सर, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद ।
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