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सोमवार, 5 सितंबर 2022

गुरु देते जीवन संवार ।


एक नन्हा मासूम ,

जो जानता नहीं ,

बाहरी दुनिया के कायदे कानून,

अभी तो सीखा है चलना ,

अभी छूटा कहां मचलना ,

इतना भी रहता नहीं होश,

कि कब जाना है शौच ,

जलाने को ज्ञान का दीप,

गुरु को देते हैं सौंप ।


एक किशोर अवस्था ,

उलझनों भरी व्यवस्था,

दिमाग में घूमें कितने प्रश्न ,

शरीर में परिवर्तन ,

विपरीत आकर्षण ,

जिज्ञासों का नहीं शमन,

मिलती राहों में  फिसलन ,

तब संयम समझ की राह दिखाकर,

गुरु करते मार्गदर्शन ।


एक युवा मन ,

चाहते उड़ने को मुक्त गगन ,

कुछ भी करने को अमादा ,

चाहते नहीं कोई बंधन ,

ऊर्जा उत्साह होता अपार ,

पर दिखाई न देता आर और पार,

तब प्रतिभा को देकर धार ,

गुरु देते जीवन संवार ।


एक उम्र दराज ,

कितनी जिम्मेदारियां और काज ,

शरीर का होता विघटन,

शांत नहीं चित और मन ,

जरूरतों का बढ़ता दामन ,

जिसके लिए जुटाना संसाधन ,

जब पाते गुरु जी की शरण ,

मिलता सब बातों का निराकरण ।


सभी आदरणीय गुरुओं को समर्पित ।

शिक्षक दिवस की बहुत शुभकामनाएं ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय ज्योति मेम, आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय कामिनी मेम सादर नमस्कार ,

    मेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (6-9-22} को "गुरु देते जीवन संवार"(चर्चा अंक-4544) पर शामिल करने हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
    सादर ।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर रचना सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया प्रस्तुति। एक नन्हे मासूम से लेकर उम्रदराज तक ..सभी के बारे में बता दिया। बहुत-बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय अभिलाषा मेम एवम वोकल बाबा सर, आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सच जिंदगी के हर मोड़ पर गुरु का साथ मिलता है
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय कविता मेम , आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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