एक नन्हा मासूम ,
जो जानता नहीं ,
बाहरी दुनिया के कायदे कानून,
अभी तो सीखा है चलना ,
अभी छूटा कहां मचलना ,
इतना भी रहता नहीं होश,
कि कब जाना है शौच ,
जलाने को ज्ञान का दीप,
गुरु को देते हैं सौंप ।
एक किशोर अवस्था ,
उलझनों भरी व्यवस्था,
दिमाग में घूमें कितने प्रश्न ,
शरीर में परिवर्तन ,
विपरीत आकर्षण ,
जिज्ञासों का नहीं शमन,
मिलती राहों में फिसलन ,
तब संयम समझ की राह दिखाकर,
गुरु करते मार्गदर्शन ।
एक युवा मन ,
चाहते उड़ने को मुक्त गगन ,
कुछ भी करने को अमादा ,
चाहते नहीं कोई बंधन ,
ऊर्जा उत्साह होता अपार ,
पर दिखाई न देता आर और पार,
तब प्रतिभा को देकर धार ,
गुरु देते जीवन संवार ।
एक उम्र दराज ,
कितनी जिम्मेदारियां और काज ,
शरीर का होता विघटन,
शांत नहीं चित और मन ,
जरूरतों का बढ़ता दामन ,
जिसके लिए जुटाना संसाधन ,
जब पाते गुरु जी की शरण ,
मिलता सब बातों का निराकरण ।
सभी आदरणीय गुरुओं को समर्पित ।
शिक्षक दिवस की बहुत शुभकामनाएं ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ज्योति मेम, आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कामिनी मेम सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (6-9-22} को "गुरु देते जीवन संवार"(चर्चा अंक-4544) पर शामिल करने हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सादर ।
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुन्दर रचना सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति। एक नन्हे मासूम से लेकर उम्रदराज तक ..सभी के बारे में बता दिया। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अभिलाषा मेम एवम वोकल बाबा सर, आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।
जवाब देंहटाएंसच जिंदगी के हर मोड़ पर गुरु का साथ मिलता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आदरणीय कविता मेम , आपकी सुन्दर और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद एवम आभार । सादर ।
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