इमेज गूगल साभार |
किसी को था यह नहीं पसंद ,
कि बुराइयां जिये और दिन चंद ,
सबने उसका एक पुतला बनाया ,
रावण का उसको रूप धराया ,
सब एकत्रित हुये एक रात ,
वह थी दशहरा के दिन की बात ।
अच्छाइयां रूप धरकर आई ,
राम लक्ष्मण बन दो भाई ,
लेकर हाथ में धनुष बाण ,
बाणों का कर अनुसंधान ,
रावण को जब आग लगाई ,
धूं धूं कर जल गई बुराई ।
गूंजा राम लक्ष्मण का जयकारा ,
रावण को तो खूब लताड़ा ,
हां यूं अच्छाई की जीत हुई ,
और बुराईयों ने दुर्गति सही,
सबके मन में खुशी समाई ,
सबने कहा खत्म हुई बुराई ।
💐💐दशहरा के पावन पर्व की
अनेकों शुभ और मंगलकारी बधाइयां । 💐💐
💐🙏जय माता दी , जय #सियारामजी की 🙏💐
बहुत अच्छी सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंबुराई मन से निकले तो फिर हर साल रावण पुतला दहन की नौबत न आन पड़ें
आदरणीय कविता मेम, आपकी बहुमूल्य और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-10-2022) को "अभी भी जिन्दा है रावण" (चर्चा-अंक-4572) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय मयंक सर ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा "अभी भी जिन्दा है रावण" (चर्चा-अंक-4572) पर करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सादर ।
बहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय sarita mam, आपकी बहुमूल्य और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर ।