#फुर्सत मिली न मुझे
अपने ही काम से
लो बीत गया एक और #साल
फिर मेरे #मकान से ।
सोचा था इस साल
अरमानों की गलेगी
दाल ,
जीवन के
ग्रह #नक्षत्रों
की
हो जायेगी अच्छी
चाल
पर चलती रही
जिदंगी इस साल भी
पुराने ही #इंतजाम से ।
बहलाता रहा मन को
कुछ #सपनों की शाम से
लो बीत गया एक और
साल
फिर मेरे मकान से
।
कुछ #तालमेल कुछ #जुगाड़
कभी उत्साह तो
कभी थक हार
गर न बना काम तो
ज़िम्मेदारी भाग्य
पर डाल
मन में न रख कुछ #मलाल
खेल ली ज़िंदगी
कुछ ऐसी ही सामान से ।
फुर्सत मिली न
मुझे
अपने ही काम से
लो बीत गया एक और साल
**दीपक कुमार भानरे**
Good sir ji🙏🌹👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , देवेश सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 23 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय । मेरी लिखी रचना "फुर्सत मिली न मुझे " को इस अंक में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
हटाएंसादर ।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
हटाएंबहुत खूब। सच है ऐसे ही बीत जाता है हर साल, गुजर जाता है दिसंबर आता है नया साल।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , मेम आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , मेम, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद , सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ।
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