०७ तारीख को विश्व स्वास्थ्य दिवस है । फिर वही आयोजन और भाषण । सबको बेहतर स्वास्थ्य स्वास्थ्य सुबिधायें देने की बात की जायेगी । किंतु स्थिति सुधरने की बजाय पहले से भी ख़राब होती जा रही है । महंगी होती इलाज की फीस , महंगी होती दवा और महंगी होती चिकित्सा शिक्षा । न कोई इसे सुधारने की स्पष्ट नीति और न कोई राहत पहुचाने वाली रीति। परेशानी तो आम जनता को होती है - मरता क्या न करता - अपने और अपने परिजनों के इलाज हेतु जोड़ तोड़ कर पैसों का इंतज़ाम करता है । हर सरकार की अपनी पहली प्राथमिकता जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुबिधायें , शिक्षा और सुरक्षा उपलब्ध कराना होता है । किंतु प्राथमिक मुद्दे होने के बाद भी ये व्यवस्थाये दिनों दिन बाद से बदतर होती जा रही है । विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सभी के स्वस्थ्य जीवन की कामना करते हुए स्वास्थ्य सुबिधाओं की व्यवस्था मैं सुधार हेतु कुछ बातों पर विचार किया जाना लाज़मी है ।
बहु राष्ट्रीय कम्पनी का दबाब या फिर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव कहे अन्य क्षेत्र की भांति इसमें भी स्वास्थ्य सम्बन्धी हर छोटी छोटी समस्याओं पर महंगी एलो पेथी चिकित्सा पद्धति को अपनाने पर जनता और सरकार तुली हुई है । जबकि इसका इलाज घरेलु आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से आसानी से हो जाता है और वह भी नाममात्र के खर्च और बिना कोई दुष प्रभाव के । सरकारी और निजी अस्पतालों को देखे तो सभी एलो पेथी चिकित्सा पद्धति पर आधारित है । बमुश्किल ही आयुर्वेद और अन्य चिकित्षा पद्धति पर आधारित अस्पताल देखने को मिलेंगे । सरकार भी अपने बज़त का बड़ा हिस्सा महंगी एलो पेथी चिकित्सा पर खर्च करती है । बड़े बड़े शोध और अनुसंधान कार्य इसी पद्धति के अंतर्गत किए जा रहे है । चिकित्सा शिक्षा के संस्थान भी इन्ही चिकित्सा पद्धति पर आधारित है । इनके अधिक से अधिक से विश्वविद्यालयों की संख्या है । पढ़ाई इतनी महंगी की आम आदमी अपने बच्चों को नही पढ़ा सकता है । इतनी महंगी शिक्षा ग्रहण करने के बाद चिकित्सकों से व्यवसायिकता की जगह मानव सेवा जैसी बातों की उम्मीद करना बेमानी साबित होगा । बहु राष्ट्रीय कम्पनिया दवाओं पर १००० गुना तक मुनाफा कमा रही है परिणाम स्वरूप दवाएं भी बहुत महंगी है ।
भारतीय परिवेश और प्रकृति के अनुसार भारतीय चिकित्सा पद्धति को विशेष स्थान देते हुए स्वास्थ्य नीति को बनाने की आवश्यकता है । एक सर्वे के अनुसार दुनिया मैं ऐसे ५७ देश हैं जन्हा प्रति १ लाख जनसंख्या पर २.३ से भी कम स्वास्थ्य सेवा प्रदाता है , जिसमे भारत भी शामिल है । सभी को समुचित स्वास्थ्य सुबिधाये उपलब्ध हो सके इसके लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवक और चिकित्सक होने चाहिए । इस हेतु हर जिला स्तर पर एवं ब्लाक स्तर पर चिकित्सा शिक्षा आधारित विद्यालयों और महा विद्यालयों को खोला जाना चाहिए , ताकि स्थानीय और ग्रामीण स्तर के छात्र भी शिक्षा ग्रहण कर सके । इनमें १२ स्तर तक और महाविद्यालय स्तर तक डिग्री दी जा सके । चुकी बड़े डिग्री धारी तथा शहरी डॉक्टर ग्रामीण स्तर मैं स्वास्थ्य सेवा देने मैं कतराते हैं , इससे इस समस्या से मुक्ति मिलेगी और स्वास्थ्य सुबिधा प्रदान करने वाले सेवकों की भी संख्या मैं बढोतरी होगी । परंपरागत आयुर्वेदिक चिकित्षा पद्धति को अधिक से अधिक से बढावा देना चाहिए । इसे तथा इसके समकक्ष चिकित्षा पद्धति को प्राथमिक स्तर की शिक्षा मैं शामिल किया जाना चाहिए । देशी दवाएं और उन पर अनुसंधान और शोध पर जोर दिया जाना चाहिए । बहु राष्ट्रीय कम्नियों की मुनाफा खोरी पर रोक लगाकर दवायों की कीमत पर रोक लगाना चाहिए ।
तभी हम सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुबिधाओं की उपलब्धता की कामना कर सकते है।