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शुक्रवार, 9 मई 2008

क्या लोगों के खानपान पर भी नजर रखेगा अमेरिका !

अमेरिका की दादागिरी तो जगजाहिर है , वह सभी देशों के क्रिया कलापों पर नजर रखता आ रहा है और यह सब वह अपने व्यावसायिक हितों और सामरिक हितों के मद्दे नजर करता आ रहा है , यह अधिकार तो उसे किसी ने नही दिया है । विश्व का परमाणु संपन्न और विकसित शक्तिशाली देश होने के कारण मजबूरी बस विश्व के अन्य देश उसके दादा गिरी को सहते आ रहे हैं । चाहे वह इराक का मामला हो , अफगानिस्तान का मामला हो , इरान का मामला हो या फिर अन्य तेल देशों को अपने व्यावसायिक हितों के अनुरूप कार्य करवाने की बात हो या फिर सामरिक हितों को ध्यान मैं रखकर दूसरे देशों मैं दखल अंदाजी की बात हो । वह जो करे वह सही और दूसरे करे तो ग़लत , सही है की जिसकी लाठी उसकी भैंस तो होगी ही । इन सब बातों के इतर अब वह लोगों के खान पान और थाली मैं भी झाकने लगा है । उनके यंहा बढ़ती मंहगाई जिसके के कारण उनके नागरिकों को कुछ अधिक खर्च करना पड़ रहा है और आगामी चुनाव के परिणाम स्वरूप आया यह दुर्भाग्य पूर्ण बयान जिसमे कहा गया की भारतीय अब ज्यादा खाने लगे है जिससे मंहगाई बढ़ रही है ।
किंतु वे इस बात से अनजान हैं की यह दो वक़्त की रोटी कितने मुश्किल से जुटाते हैं अधिकांश भारतीय । जितना वे खाते है वह सिर्फ़ पेट भरने के लिए अर्थात जिससे सिर्फ़ जीवन चलाया जा सके । उनके भोजन मैं तो संतुलित भोजन भी नही रहता है। त्योहारों और उत्सव जैसे अवसरों पर ही भोजन के मेनू मैं वृद्धि होती है । अन्यथा सिर्फ़ रोटी , चावल और दाल या सब्जी के अलावा अन्य भोज्य पदार्थ तो रहते ही नही है । और कुछ भारतीयों की थाली मैं तो यह भी नही रहता है । कई लोग तो भोजन के अभाव मैं दम तोड़ देते है।
वही इसके विपरीत अमेरिकियों का भोजन संतुलित भोजन से कही अधिक मात्रा मैं होता है वे एक भारतीय से कही अधिक बार भोजन करते हैं । यह बात भी छुपी नही है की वहां तो अधिक खाने के कारण मोटापे की बिमारी बढ़ रही है , और यहाँ तक की अधिक खाने के कारण मौते भी हो रही है । वंही अमेरिका द्वारा मक्का जैसे खाद्य पदार्थ से बायो इंधन बनाने की कवायद , जिसका की बढ़ती मंहगाई और खाद्य संकट के कारण विरोध हो रहा है भी उनकी चिंता का कारण बन रहा है ।। संभवतः ये सब बातें अमेरिका को इस तरह की बातें कहने के लिए बाध्य कर रही है । किंतु एक विकसित और आधुनिक और अपने को सभ्य समाज कहने वाले राष्ट्र का दूसरों की थाली मैं झाँककर इस तरह की बात करना , ओछी मानसिकता का परिचायक हैं । क्या अब अमेरिका द्वारा लोगों के खाने पर भी निगरानी की जायेगी ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी ओछी मानसिकता का परिचय देना बुश के लिये अभी भी बाकी है क्या?? कई बार तो दे चुका बेचरा. :)



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    आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

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    शुभकामनाऐं.

    -समीर लाल
    (उड़न तश्तरी)

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  2. bahut achha laga aapka lekh pad kar bilkul sahi baat kahi hai aapne america ke bare me. ummid hai aage bhi acchha padne ko milaga . bahut bahut subhkamanaye

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  3. aap buddhijeevi pathko ko blog padhne aur pratikriya dekar protshahit karne ke liye bahut bahut dhanyabaad.aasha hai hai aise hi mera uttashverdhan kiya jaata rahega. hindi blog main hindi lekhan ko sashakt aur samradh banaane hetu yathshakti athak prayas kiya jaana hamaara param kartvya hai.

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