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गुरुवार, 15 मई 2008

प्रकृति के प्रकोप से बचना मुश्किल होगा !

चक्रवाती तूफ़ान नरगिस ने जन्हा मयन्मार मैं कहर ढाया , तो चीन मैं तेज़ भूकंप के झटके ने तबाही मचाई । अब दिल्ली मैं चक्रवाती तूफ़ान ने हंगामा मचाया किंतु यह बात अलग थी की इसमे जान माल का कोई ख़ास नुकसान नही हुआ । अतः यह सब प्रकृति के द्वारा अंजाम दी जा रही घटना है । जिस पर मानव का कोई बस चलता नजर नही आता है । मानव द्वारा अभी तक गई तरक्की भी प्रकृति के क्रोध के सामने बोनी और असहाय नजर आती है । इन सब पीछे तो एक ही कारण नजर आता है और वह है प्रकृति के साथ मानव द्वारा किया गया खिलवाड़ , उसका अविवेकपूर्ण अन्धाधुन्द दोहन और बेवजह की दखल अंदाजी । परिणाम स्वरूप अब मानव को प्रकृति के कोप भाजन का शिकार तो होना पड़ेगा , और ऐसा क्रोध जिससे पार पाना मानव के सामर्थ्य से तो बाहर है ।
प्रकृति के प्रकोप से बचने का एक ही रास्ता नजर आता है की मानव को प्रकृति के पांच तत्त्व जल , अग्नि , प्रथ्वी , हवा और आकाश के बीच सामंजस्य बनाना बहुत ही जरूरी है , यदि मानव इनमे से किसी के साथ भी खिलवाड़ और दखलंदाजी करता है तो कही सूखा और अकाल तो कही भारी वर्षा और बाढ़ , कही तूफान तो कही भूकंप , कही बेमौसम बारिश तो कही भारी गर्मी जैसे भयंकर परिणाम मानव को भुगतने होंगे ।
अतः आवश्यक है की जल की बरवादी और उसका बेतहाशा दोहन न किया जाए , उसके सरंक्षण का प्रयास किया जाए , अग्नि के साथ खिलवाड़ न किया जाए , आग की दुर्घटना रोकने के उपाय किया जाए और न ही बेवजह इंधन का प्रयोग कर तापमान को बढाया जाए , प्रथ्वी का गहना कहे जाने वाले पेड़ पौधे की बेवजह कटाई बंद कर उनके संबर्धन और सरंक्षण का प्रयास किया जाए , उद्योगों और वाहनों के माध्यम से और उपयोग किए जाने वाले हानिकारक पदार्थों के माध्यम से हवा और आकाश मैं जहर घोलना बंद किया जाए । तभी हम एक सुंदर और सुखद विश्व की कामना कर सकते है ।

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