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शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008

अब हर फिक्र को धुँए मैं कैसे उडायेंगे .

ये सरकार ने भी क्या कर डाला । अब लोग अपनी फिक्र को धुँए मैं कैसे उड़ा पायेंगे । अब तो वो गाना भी बेमानी हो जायेगा की " मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया , हर फिक्र को धुएँ मैं उडाता चला गया " । तो अब जिन्दगी का साथ निभाने के लिए जो चिंता और फिक्र है उसको अब धुँए मैं नही उडाया जा सकेगा । ये सरकार भी जो हैं न , जिसे की जनता के सहूलियत को ख़याल रखना चाहिए , उसी को परेशान करने मैं लगी है । अरे जिस धुएँ के सहारे लोग बड़ी से बड़ी चिंता और फिक्र को दूर करते थे , बड़ी से बड़ी परेशानी का हल ढूँढ निकालते थे , ज्यादा नही तो कम से कम धुएँ के सहारे कुछ समय के लिए ही सही चिंता और फिक्र से राहत पाते थे । अब उनका यही राहत देने वाला साधन ही छीन लिया गया है । सरकार ने तो बड़ी मुश्किल कर दी है । सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक लगाकर । यंहा तक तो ठीक था , बार और मैखाना तक मैं भी धुएँ उडाने पर पाबंदी लगा दी गई है । लगता है अब गाना बदलना पड़ेगा और अब फिक्र को धुएँ उडाने की बजाय , मैखाने मैं शराब और मदिरा मैं बहा कर काम चलाना पड़ेगा ।
धुएँ उडाने वालों की बड़ी परेशानी बन गई है घर वाले भी आजकल घरों मैं धुआं उडाने से मना करते हैं जिसके कारण घर के बाहर धुआं उडाया करते थे , किंतु अब वह भी बंद कर दिया गया है ।

सरकार को आम जनता का धुएँ उडाना ही नजर आ रहा है , दूसरों का धुएँ उडाना नजर नही आ रहा है । वो रेलवे वाले इतना धुआं उडा रहा है उन्हें कोई नही बोल रहा है । बड़ी बड़ी कंपनी वाले धुएँ उड़ा कर पर्यावरण को ख़राब कर रहें है , उन पर पाबंदी लगाने की कोई फिक्र नही है । दिन रात सरकार की मंत्री और अफसर गाड़ी दौड़ा दौड़ा कर धुआं उडा रहे हैं जनता के पैसे को बेफिक्र होकर उड़ा रहें है वो सरकार को नजर नही आ रहा है ।

वैसे चुनाव का समय आ रहा है यदि धुआं उडाने वाले चाहते हैं की उनका यह प्रतिबन्ध सरकार वापस ले ले , तो जल्द से जल्द अपना एक धुआं उडाने वाला संघटन बनाए , और सरकार को संगठन की वोट बैंक की शक्ति को दिखाएँ , जगह जगह धरना , प्रदर्शन और जुलुश निकाले तब सरकार निश्चित रूप से यह पाबंदी हटा सकती है क्योंकि इतने सारे वोट जो उससे दूर चले जायेंगे । तो धुआं उडाने वालों देर किस बात की , शुरू हो जाओ और अपने धुएँ उडाने के अधिकार को मौलिक अधिकार मैं जुड़वाँ लो यही अच्छा समय है । और फिर से अपनी फिक्र को धुएँ मैं उड़ा कर मस्त और खुश रहो ।

यह तो रही धुएँ उडाने वालों की बात , जनता की बात करें तो सरकार लोगों के धुएँ उडाने को रोकना चाह रही है किंतु वह ख़ुद देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार जैसे जनहित मुद्दे को की फिक्र को धुएँ मैं उडाकर मस्त हैं ।
अजी हम तो चाहते हैं की जिस तरह से सरकार जनता का धुआं उडाना बंद कर पीने वालों और नही पीने वालों के स्वास्थय का की फिक्र कर रही है ठीक उसी तरह देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार एवं देश हित और जनहित की अन्य समस्यायों की फिक्र को यूँ ही धुएँ मैं न उडाये , वरन उनको भी इसी तरह रोकने की इक्छा शक्ति दिखाएँ ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. भाई एक युनियन बना लो फ़िर बात करते हे,प्रधान हम अनुराग जी को बना लेगे
    **धुआं उडाऊ भारतीय युनियन**
    ओर नारा रखो ...
    धुआं उडाऊ भाई भाई..
    देश के नेता हे कसाई...
    धन्यवाद

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  2. सही है-उड़ाने वाला रास्ता निकाल ही लेंगे.

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