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सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

क्या चुने हुए जनप्रतिनिधि / सरकार सभी जनता / देश का प्रतिनिधित्व करती है !

भारत के सत्ता शासन मैं जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार बैठती है , जो की जनता की भावना और अकान्छाओं के अनुरूप कार्य करती है । इस सरकार मैं देश के प्रदेशों के विभिन्न क्षेत्रों से जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है । किंतु यक्ष प्रश्न है की आज की स्थिती मैं यह चुनी सरकार और चुने हुए प्रतिनिधियों को समस्त जनता की भावना और अकान्छाओं का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है जन्हा की आज कल के चुनाव मैं देश की सभी जनता द्वारा मतदान मैं भाग नही लिया जा रहा है । आजकल के चुनावों का मत प्रतिशत बमुश्किल से ५० से ६० प्रतिशत होता है । ऐसी स्थिती मैं यह माना जा सकता है लगभग आधे जनता द्वारा अपना मत जनप्रतिनिधियों के प्रति नही दिया गया है । यदि चुनाव मैं कुल मत ५० से ६० फीसदी पड़ते है और यह माना जा सकता है की जीते हुए उम्मीदवार को इससे आधे मत यानि की २५ से ३० प्रतिशत प्राप्त होते होंगे एवं लगभग आधे से कम अर्थात २५ फीसदी से भी कम मत उसके बाद वाले उम्मीदवार को मिलते होंगे , और लगभग १० प्रतिशत से अधिक मत अन्य बाद वाले उम्मीदवार को मिलते होंगे । अर्थात यह कहा जा सकता है की विजयी अर्थात चुने हुए उम्मीदवार को मातृ २५ से ३० प्रतिशत मत प्राप्त होंगे । तो ऐसे मैं कैसे कहा जा सकता है की चुना हुआ उम्मीदवार उसके क्षेत्र की समस्त जनता की भावना और आकान्छाओं का प्रतिनिधिव करते हैं । इसी प्रकार यह भी कैसे कहा जा सकता है उसकी अभिव्यक्ति और प्रतिनिधित्व समस्त देश देश का है या वह देश की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है । यदि सरकार के बात करें तो उसमे तो देश के अलग अलग प्रान्तों , प्रदेशों और क्षेत्रों से जन प्रतिनिधि चुनकर आते हैं और वे अपने क्षेत्र के समस्यायों और लोगों की भावना के अनुरूप वादा निभाने की भावना से आते है और देश के अन्य क्षेत्रों की समस्यायों और भावना को समझ और जान पाना उनके लिए पूरी तरह सम्भव नही हो पाता होगा ।
अतः चुने जन प्रतिनिधियों को उसके समस्त क्षेत्र की जनता का पूरा मत नही मिलता है और सरकार को जब देश की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व नही मिलता है तो यह कहा जा सकता है की आधे से अधिक जनता के द्वारा नकारे गए ये जनता के प्रतिनिधि और सरकार समस्त जनता के जनभावना के अनुरूप काम करने मैं पूरी तरह सफल नही हो पाते है , और जो नीतियां और योजनायें बनती है वे भी सभी जनता की भावना , जन आकान्छाओं और आवश्यकताओं और समस्यायों के अनुरूप नही बन पाती होगी , जिससे सरकार की नीतियां अधिकतर मामले मैं पूर्णतः सफलता के चरम पर नही पहुच पाती है । अतः यह कहा जा सकता है की आधा अधूरा जनमत से सही जनप्रतिनिधि चुनकर नही आ पाते हैं और वे क्षेत्र और देश की समस्त जनता की जन भावनाओं की अनुरूप कार्य नही कर पाते है और इस आधार पर उनकी किसी अभिव्यक्ति को समस्त जनता की अभिव्यक्ति नही माना जा सकता है । ऐसी स्थिती प्रजातंत्र की सफलता पर भी प्रश्चिन्ह लगाती है जनता की तरफ़ से नो वोट के विकल्प की मांग उठाना और भी गंभीर स्थिती को प्रर्दशित करती है जो की अत्यन्त विचारणीय है ।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने.पूर्ण रूपेण सहमत हूँ आपसे.
    आज जो भी जनप्रतिनिधि रूप में जनता को उपलब्ध हैं,बहुसंख्यक तो आपराधिक पृष्ठभूमि से दबंग या भ्रष्ट ही हैं,तो जनता के पास चुनाव का विकल्प ही क्या बचता है.वर्तमान में जनता की उदासीनता का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है.

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  2. जनता के प्रतिनिधि और सरकार जनता का नहीं अपना और अपने आकाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. पाटिल और प्रफुल को जनता ने नकारा पर वह एक विदेशी महिला द्बारा मंत्री बना दिए गए. इस महिला और उसकी इस सरकार ने भारतीय जनता का घोर अपमान किया है. ख़ुद इस सरकार का मुखिया जनता द्बारा नहीं चुना गया.

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