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मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

चुनाव के दो दृश्य - सकारात्मक और नकारात्मक !

देश के पाँच राज्यों मैं चुनाव की तारीख , निर्वाचन आयोग ने घोषित कर दी है । जिससे इन पाँच राज्यों मैं अब उत्सव का माहोल बनेगा तो वही दूसरी और किसी भी पल अशांति और तनाव का वातावरण भी बन सकता है । आपसी मेल मिलाप बढेगा , कई दिन से बिछुडे साथी , दोस्त , रिश्तेदार और बड़े बुजर्गों के रूप मैं चुनावी कार्यकर्ता और नेतागण मिलेंगे , जो पिछले पाँच सालों से न जाने कान्हा गम हो गए थे । अब जनता को वो समान और इज्जत मिलेगी जो उसने कभी सोची नही होगी , अचानक वो जनता से जनार्दन बन जायेगी । पता नही कैसे कैसे रिश्तेदारी और सम्बन्ध निकालकर नए नए लोग और नेतागण कही पैर छूकर आशीर्वाद लेंगे तो कही छोटों को शुभाशीर्वाद देंगे । कोई उपहार स्वरुप साड़ी भेंट करेगा तो कोई कम्बल , कोई रूपये पैसे देगा तो कोई अन्य उपहार । युवा लोगों और मौज मस्ती करने वालों लोगों के लिए बाकायदा इंतजाम किए जायेंगे । सारा माहोल उत्सव सा हो जायेगा , ऐसे लगेगा की मानो आज शहर भाईचारे की भावना से ओतप्रोत हो अमन, शान्ति और खुशियों का स्वर्ग बन गया है । सारा शहर रंग बिरंगे बेनरों और झंडो एवं घर की दीवारें रंगों से सज जायेगी ।
वही घर के कई बेकार बैठे नौजावानो और लोगों को नया काम मिलेगा । किसी को चुनाव प्रचार का तो किसी को पोस्टर , पुम्फ्लेट और नारे लेखन का काम । बहुत से लोगों को तो मुफ्त मैं गाड़ी से गाँव गाँव और शहर के चप्पे के सेर करने को मिलेगी , उनके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम भी रहेगा और हो सके तो प्रतिदिन का मेहनताना भी मिल जायेगा । ऐसे समय मैं कई छुट भइया नेताओ की भी पूछ परख बढ़ जायेगी , और कई दिन से खाली बैठे को काम मिल जायेगा । ये तो था चुनाव का सुखद पक्ष ।
यही चुनाव अब लोगों को अपनी विचारधारा के आधार पर अलग अलग बाँट देगा । पास पड़ोस के लोग और यंहा तक की भाई भाई और एक ही घर के सदस्यों मैं पार्टी की विचारधारा पर फूट पड़ जायेगी । अमन चैन से पड़ोस मैं रहने वाले लोग और शान्ति से रहने वाले घर के सदस्यों के बीच मन मुटाव होने लगेगा । कोई अपने घर कोई और झंडा और बेन्नर लगा रखेगा तो कोई किसी और पार्टी का । नौजवान युवक अपने पार्टी के नेता और पार्टी के लिए मरने मारने को तैयार रहेंगे । कोई लोगों को अपनी पार्टी के पक्ष मैं करने मैं लगा रहेगा तो कोई अपनी पार्टी की और खीचने मैं , इसी खीचतान मैं आपसी रंजिश बढाते रहेंगे । हर पल माहोल तनाव और अशांति का बना रहने की आशंका बनी रहेगी ।
चुनावी परिद्रश्य का सकारात्मक और नकारात्मक रुख वाला रूप देश और प्रदेश मैं एक नए परिद्रश्य को उभारने का काम करेगा । इन चुनावों से निकलने वाले परिणाम देश और प्रदेश की नई दिशा और दशा तय करेंगे । फिर भी एक बात आशा की जानी चाहिए की मतदाता किसी प्रलोभन मैं ना आकर अपने स्वविवेक से अपना हित और अहित एवं देश और प्रदेश के अच्छे के बारे मैं सोचते हुए अपना अमूल्य मत डालेगा , जो की देश और प्रदेश और उनके क्षेत्र की उन्नति और प्रगति मैं एक नए युग का सूत्रपात करेगा ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi badhiya vichaar. suna hai ki aaj ratri 12 baje se chunaav achaar sahinta lagoo ho rahi hai.

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  2. फिर भी एक बात आशा की जानी चाहिए की मतदाता किसी प्रलोभन मैं ना आकर अपने स्वविवेक से अपना हित और अहित एवं देश और प्रदेश के अच्छे के बारे मैं सोचते हुए अपना अमूल्य मत डालेगा ,
    बहुत सुनदर विचार, सुन्दर सलाहा
    धन्यवाद

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  3. दुनिया की क्रांतियों का इतिहास कहता है कि परिवर्तन के लिए दो चीजों की आवश्यकता है । एक अकाट्य तर्क और दूसरा उस तर्क के पीछे खड़ी भीड़ । अकेले अकाट्य तर्क किसी काम का नही और अकेले भीड़ भी कुम्भ के मेले की शोभा हो सकती है परिवर्तन की सहयोगी नही ।
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    इस युग के कुछ अकाट्य तर्क इस प्रकार है -
    * मशीनों ने मानवीय श्रम का स्थान ले लिया है ।
    * कम्प्यूटर ने मनवीय मस्तिष्क का काम सम्भाल लिया है ।
    * जीवन यापन के लिए रोजगार अनिवार्य होने की जिद अमानवीय है ।
    * 100% रोजगार सम्भव नही है ।
    * अकेले भारत की 46 करोड़ जनसंख्या रोजगार के लिए तरस रही है ।
    * संगठित क्षेत्र में भारत में रोजगार की संख्या मात्र 2 करोड़ है ।
    * दुनिया के 85% से अधिक संसाधनों पर मात्र 15 % से कम जनसंख्या का अधिपत्य है ।
    * 85 % आबादी मात्र 15 % संसाधनों के सहारे गुजर बसर कर रही है ।
    धरती के प्रत्येक संसाधन पर पैसे की छाप लग चुकी है, प्राचीन काल में आदमी जंगल में किसी तरह जी सकता था पर अब फॉरेस्ट ऑफिसर बैठे हैं ।
    * रोजगार की मांग करना राष्ट्र द्रोह है, जो मांगते हैं अथवा देने का वादा करते हैं उन्हें अफवाह फैलाने के आरोप में सजा दी जानी चाहिए ।
    * रोजगार देने का अर्थ है मशीनें और कम्प्यूटर हटा कर मानवीय क्षमता से काम लेना, गुणवता और मात्रा के मोर्चे पर हम घरेलू बाजार में ही पिछड़ जाएंगे ।
    * पैसा आज गुलामी का हथियार बन गया है । वेतन भोगी को उतना ही मिलता है जिससे वह अगले दिन फिर से काम पर लोट आए ।
    * पुराने समय में गुलामों को बेड़ियाँ बान्ध कर अथवा बाड़ों में कैद रखा जाता था ।
    अब गुलामों को आजाद कर दिया गया है संसाधनों को पैसे की दीवार के पीछे छिपा दिया गया है ।
    * सरकारों और उद्योगपतियों की चिंता केवल अपने गुलामों के वेतन भत्तों तक सीमित है ।
    * जो वेतन भत्तों के दायरों में नही है उनको सरकारें नारे सुनाती है, उद्योग पति जिम्मेदारी से पल्ला झाड़े बैठा है ।
    * जो श्रम करके उत्पादन कर रही हैं उनकी खुराक तेल और बिजली है ।
    * रोटी और कपड़ा जिनकी आवश्यकता है वे उत्पादन में भागीदारी नही कर सकते, जब पैदा ही नही किया तो भोगने का अधिकार कैसे ?
    ऐसा कोई जाँच आयोग बैठाने का साहस कर नही सकता कि मशीनों के मालिकों की और मशीनों और कम्प्यूटर के संचालकों की गिनती हो जाये और शेषा जनसंख्या को ठंडा कर दिया जाये ।
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    दैनिक भास्कर अखबार के तीन राज्यों का सर्वे कहता है कि रोजगार अगले चुनाव का प्रमुख मुद्दा है , इस दायरे में 40 वर्ष तक की आयु लोग मांग कर रहे हैं।
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    देश की संसद में 137 से अधिक सांसदों के द्वारा प्रति हस्ताक्षरित एक याचिका विचाराधीन है जिसके अंतर्गत मांग की गई है कि
    * भारत सरकार अब अपने मंत्रालयों के जरिये प्रति व्यक्ति प्रति माह जितनी राशि खर्च करने का दावा करती है वह राशि खर्च करने के बजाय मतदाताओं के खाते में सीधे ए टी एम कार्डों के जरिये जमा करा दे।
    * यह राशि यू एन डी पी के अनुसार 10000 रूपये प्रति वोटर प्रति माह बनती है ।
    * अगर इस आँकड़े को एक तिहाई भी कर दिया जाये तो 3500 रूपया प्रतिमाह प्रति वोटर बनता है ।
    * इस का आधा भी सरकार टैक्स काट कर वोटरों में बाँटती है तो यह राशि 1750 रूपये प्रति माह प्रति वोटर बनती है ।
    * इलेक्ट्रोनिक युग में यह कार्य अत्यंत आसान है ।
    * श्री राजीव गान्धी ने अपने कार्यकाल में एक बार कहा था कि केन्द्र सरकार जब आपके लिए एक रूपया भेजती है तो आपकी जेब तक मात्र 15 पैसा पहूँचता है ।
    * अभी हाल ही में राहुल गान्धी ने इस तथ्य पर पुष्टीकरण करते हुए कहा कि तब और अब के हालात में बहुत अंतर आया है आप तक यह राशि मात्र 3 से 5 पैसे आ रही है ।
    राजनैतिक आजादी के कारण आज प्रत्येक नागरिक राष्ट्रपति बनने की समान हैसियत रखता है ।
    जो व्यक्ति अपना वोट तो खुद को देता ही हो लाखों अन्य लोगों का वोट भी हासिल कर लेता है वह चुन लिया जाता है ।
    * राजनैतिक समानता का केवल ऐसे वर्ग को लाभ हुआ है जिनकी राजनीति में रूचि हो ।
    * जिन लोगों की राजनीति में कोई रूचि नही उन लोगों के लिए राज तंत्र और लोक तंत्र में कोई खास अंतर नही है ।
    * काम के बदले अनाज देने की प्रथा उस जमाने में भी थी आज भी है ।
    * अनाज देने का आश्वासन दे कर बेगार कराना उस समय भी प्रचलित था आज भी कूपन डकार जाना आम बात है ।
    * उस समय भी गरीब और कमजोर की राज में कोई सुनवाई नही होती थी आज भी नही होती ।
    * जो बदलाव की हवा दिखाई दे रही है थोड़ी बहुत उसका श्रेय राजनीति को नही समाज की अन्य व्यवस्थाओं को दिया जाना युक्ति संगत है ।
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    राष्ट्रीय आय में वोटरों की नकद भागीदारी अगले चुनाव का प्रमुख मुद्दा होना चाहिए ।
    * अब तक इस विचार का विस्तार लगभग 10 लाख लोगों तक हो चुका है ।
    * ये अकाट्य मांग अब अपने पीछे समर्थकों की भीड़ आन्धी की तरह इक्क्ट्ठा कर रही है ।
    * संसद में अब राजनीतिज्ञों का नया ध्रूविकरण हो चुका है ।
    * अधिकांश साधारण सांसद अब इस विचार के साथ हैं । चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हो ।
    * समस्त पार्टियों के पदाधिकारिगण इस मुद्दे पर मौन हैं ।
    * मीडिया इस मुद्दे पर कितनी भी आँख मूँद ले, इस बार न सही अगले चुनाव का एक मात्र आधार 'राष्ट्रीय आय मं. वोटरों की नकद भागीदारी' होगा, और कुछ नही ।
    * जो मिडिया खड्डे में पड़े प्रिंस को रातों रात अमिताभ के बराबर पब्लिसिटी दे सकता है उस मीडिया का इस मुद्दे पर आँख बन्द रखना अक्षम्य है भविष्य इसे कभी माफ नही करेगा|
    knol में जिन संवेदनशील लोगों की इस विषय में रूचि हो वे इस विषय पर विस्तृत जान कारी के लिए fefm.org के डाउनलोड लिंक से और इसी के होम पेज से सम्पर्क कर सकते हैं ।
    मैं नही जानता कि इस कम्युनिटी के मालिक और मोडरेटर इस विचार से कितना सहमत या असहमत हैं परंतु वे लोग इस पोस्टिंग को यहाँ बना रहने देते हों तो मेरे लिए व लाखों उन लोगों के लिए उपकार करेंगे जो इस आन्दोलन में दिन रात लगे हैं ।
    सांसदों का पार्टीवार एवं क्षेत्र वार विवरण जिनने इस याचिका को हस्ताक्षरित किया, वेबसाइट पर उपलब्ध है ।

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  4. @एक बात आशा की जानी चाहिए की मतदाता किसी प्रलोभन मैं ना आकर अपने स्वविवेक से अपना हित और अहित एवं देश और प्रदेश के अच्छे के बारे मैं सोचते हुए अपना अमूल्य मत डालेगा , जो की देश और प्रदेश और उनके क्षेत्र की उन्नति और प्रगति मैं एक नए युग का सूत्रपात करेगा ।

    आशा पूरी हो ऐसी आशा है.

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