हम हमेशा पड़ोसी देश को आतंकियों का पनाह्गार कहकर उन्हें देश मैं आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहते हैं और पड़ोसी देश को भला बुरा कहते हैं , और इसमे अब कोई शक की गुंजाईश भी नही रही है । किंतु इन सब से अलग हमारे देश मैं दिया तले अँधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है । देश की नीतियां देश को आतंकियों का हिमायती साबित करती नजर आ रही है ।
सजायाफ्ता आतंकी , संसद मैं हमले का मुख्य सूत्रधार को पनाह और सरंक्षण देकर देश मैं वही सब किया जा रहा है और वह भी इस आतंकी घटना को विफल करने मैं शहीद हुए जवानों की कुर्वानी की कीमत पर । देश के क़ानून बनाने वाले और कानून के सरंक्षक ख़ुद ही देश के कानून का मखोल उड़ा रहे है । गृह मंत्री ख़ुद अफजल के बचाव मै , सरबजीत की अफजल से तुलना कर नए नए बेतुके तर्क देते नजर आ रहे हैं । आतंकवादी वारदातों को रोकने हेतु बनाया गए पोटा जैसे कानून को खत्म कर और कानून मैं उनके प्रति लचीला रुख अपनाकर भी आतंकी को अप्रत्यक्ष रूप से मदद की जा रही है । देश की जेल भी आतंकियों का पनाह्गार बनी हुई है , उनके मामले को लंबे समय तक विचाराधीन रखकर उनके प्रति नरमी बरती जा रही है । पड़ोसी देश से बार बार सीमा पर आतंकी घुसपैठ और गोलीबारी की घटना होती रहती है जिसमे की कई वीर जवान हताहत और शहीद होते है इस पर मात्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर इन घटनाओं की पुनरावृत्ति को प्रोत्शाहित किया जाता है । अभी हाल ही की घटना इसका उदाहरण है की पड़ोसी देश के साथ हो रही वार्ता के दौरान ही सीमा पार से हो रही गोलीबारी पर एक जवान शहीद हो गया ।
अतः जब तक देश मैं हो रही इस प्रकार की आतंक वादियों की हिमायती नीतियां और गतिविधियाँ ख़त्म नही होगी , देश से आतंक वाद का पूरी तरह खात्मा कर पाना असंभव जान पड़ता है ।
सरबजीत की तुलना अफ़ज़ल से करना बचकानी हरकत है.. ग्रह मंत्री से ऐसी उमीद नही थी..
जवाब देंहटाएंShaabaash, achchaa likhaa hai. Keep it up.
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